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परमार अभिलेख
१३. तुम्हास
ऐसा वह देव (नृसिंह) क्रोधितनखों से . . . .जीतने वाला, मेरे भय को नष्ट करे । भक्ति की
निष्फलता तब तक ८. उचित नहीं, अपनी भूमि की राज्यलक्ष्मी का . . . . पाताल लोक . . . .श्रीमान् भक्त पर अनु
रक्त . . . .घने नीले मेघ के अत्याधिक संघ समूह ९. हमारा सब प्रकार का आशारूपी गगन अवरुद्ध करता . . . . मनोरम वन. . . . काले रत्तिका
के गुच्छे कर्णफूलों से १०. सुन्दर गोपिकाओं की दृष्टि के मनोरथ स्वरूप, जिनका मुकुट मोरपुच्छ से ग्रथित है. . . .
कालिंदी के वन में विहार करने वाले काले मेघ . . . . प्रसन्न . . . . सत्य मनुष्य मग्न है आत्मा
जिसकी.... ११. उत्कंठित मिलने वाली गोपी समूह से घिरे हुए श्रीकृष्ण में . . . .तुम्हारा. . . .प्राप्त होकर
अत्यन्त भारी पर्वतप्रायः स्तनवालियों के द्वारा, बहाने से १२. घिरा हुआ उत्कंठित छाती से श्री गोप... .अशक्त है, हमारा एकान्त में आलिंगन करके
कोई तो भी आनंदित हई गोपियों द्वारा इस प्रकार रोमांचों से तिरस्कृत, बचपने के बहाने.... तम्हारा रक्षण करे। चरणपर्यन्त लटकने वाली....नाभि व हृदय. . . .कालिय को यमना
सहित सखियों ने, अति उग्र होने पर भी सन्मुख कर लिया है . . . .हंसते हुए गोपी से धारण करता .. हो, वह गोप-जनार्दन हरण करे व मेरे को सुख प्रदान करे । क्षीर समुद्र में १४. घिरा हुआ इन सुवर्ण के कलशों का भरण करे, आगे मेघ के समान वृन्दावन में धरोहररूप क्यों
स्थित है । सखियां.. . . मेरे हृदय का हरण करने वाला, अपमानित करने पर भी हंसता हुआ चोर गोपाल तुम्हारा कल्याणकारी हो । रक्षा ही जिसका रस है, उस विषय में प्राप्त होने योग्य
सुखों में.... १५. ... .परिचित कृष्ण में कैसे रमा जाता है, हटात् सखियां यह घोषित करती हैं, इस प्रकार
गोपियों द्वारा जो संबोधित किया जाता है वह मेरी समृद्धि के लिये हो। लक्ष्मीपति श्रीरूप से हृदय में एकमात्र निवास करने वाली उसकी कांति के अंशों से व्याप्त जो स्पर्श किये गये
विहार करते हैं . . . . . १६. . . . . रक्षण करे, तेरे एक चरण के ध्यान द्वारा आत्मा को परिपूर्ण करके जो पुण्य, सुख व
लक्ष्मी के पात्र बनते हैं उनको भय कैसा । विल्हण ने वाणिरूपी पुष्पों की माला से विष्णु के
चरणों में सतत् पूजा की । असीमित कोटिशः कविसमूहों ने. . . . १७. . . . . विंध्यवर्मन् नरेश का कृपापात्र सांधिविग्रहिक विल्हण कवि। यह भौतिक शरीर क्षण
भंगुर है ऐसा देखकर अविनाशी वाङमय का निर्माण किया। विध्यवर्मन् के पुत्र ने राज्य से सम्मानित सुभट नरेश ने सुन्दर दो वाटिकायें बनवाई . . . . ।
(५९) पिपलियानगर का अर्जुनवर्मन् प्रथम का ताम्रपत्र अभिलेख
(संवत् १२६७ = १२१० ई.) प्रस्तुत अभिलेख, प्राप्त विवरण के अनुसार, तीन ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है जो पूर्वकालीन अभिलेख क्र. ५३ के समान शाजापुर जिले में पिपलियानगर से एक किसान को प्राप्त हुए थे। एल. विल्किसन ने इसका विवरण ज. ए. सो. बं., भाग ५, १८३६, पृष्ठ ३७७-३८२ पर दिया । कीलहान की उत्तरी अभिलेखों की सूचि क्र. १९५; भण्डारकर की उत्तरी अभिलेखों की सूचि क्र. ४५७ एवं
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