SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भोपाल अभिलेख २२५ (५५-५६) भोपाल में उदयादित्य (?) के दो अभिलेख (संवत् १२४१=११८४ ई. एवं शक संवत् ११०८=११८६ ई.) फिट्ज़ एडवर्ड हाल ने जर्नल ऑफ अमेरिकन ओरियंटल सोसाईटी (भाग ७, १८६०, पृष्ठ ३५) पर उल्लेख किया है कि तत्कालीन भोपाल स्टेट की राजधानी भोपाल में उनके देखने में दो अभिलेख आए जिनका उस समय तक सम्पादन नहीं हो पाया था। वर्तमान में उन दोनों ही अभिलेखों के संबंध में कोई समाचार नहीं है। (१) उपलब्ध विवरण के अनुसार प्रथम अभिलेख, जो अनुमानत: किसी प्रस्तरखण्ड पर उत्कीर्ण था, में उदयादित्य नामक किसी नरेश का उल्लेख है। उसकी तिथि सं. १२४१ तदनुसार ११८४ ईस्वी है। परन्तु बहुत खोज करने पर भी ऐसे किसी प्रस्तरखण्ड की प्राप्ति न हो सकी। (२) प्राप्त विवरण के अनुसार भोपाल में स्थित विज मंदिर में किसी अन्य प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण अभिलेख का उल्लेख किया गया है। उसमें निम्नलिखित श्लोक लिखा बतलाया गया है भपाले भमिपालोऽयमंदयादित्य पार्थिव । तेनेदं निर्मितं स्थानं वसुपूर्णेश्वरै शके ।। (अर्थात् भोपाल में भूमिपाल उदयादित्य' नामक नरेश हुआ। उसने शक ११०८ में यह स्थान (मंदिर) बनवाया)। इससे ज्ञात होता है उपरोक्त तिथि को भोपाल में उक्त मंदिर उदयादित्य नामक नरेश द्वारा बनवाया गया था। परन्तु बहुत खोज करने पर भी ऐसे किसी अभिलेख की प्राप्ति न हो सकी। १२वीं सदी के उत्तरकाल में उदयादित्य नामक किसी ऐसे नरेश की जानकारी प्राप्त नहीं होती जिसने भोपाल क्षेत्र में राज्य किया हो। . . भोपाल से प्राप्त महाकुमार उदयवर्मन् के संवत् १२५६ तदनुसार ११९९ ई. (क्र. ५७) के ताम्रपत्र अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने होशंगाबाद - भोपाल क्षेत्र के एक भाग पर राज्य किया था । परन्तु केवल इसी आधार पर उदयवर्मन् का तादात्म्य उदयादित्य से करना तर्क संगत नहीं है। अत: भावी खोज तक प्रतीक्षा करना ही युक्तियुक्त है। भोपाल का महाकुमार उदयवर्मदेव का ताम्रपत्र अभिलेख (विक्रम संवत् १२५६=११९९ई.) प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है जो १८५० ई. में भोपाल के पास उलजमुन ग्राम में मिले थे। जे. एफ. फ्लीट ने इन का विवरण १८८७ ई. में इं. ऐं., भाग १६, पृष्ठ २५२-२५६ पर दिया। कीलहान द्वारा सम्पादित उत्तर भारतीय अभिलेखों की सूचि क्र. १८९ पर इसका उल्लेख है। बाद में भी समय-समय पर इसका उल्लेख किया जाता रहा। ताम्रपत्र आकार में ३३४ २५ सें. मी. है। इनमें लेख भीतर की ओर खुदा है। इनमें दो-दो छेद हैं। किनारे मोटे हैं व भीतर की ओर मुड़े हैं। ताम्रपत्रों का वजन प्रायः २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy