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परमार अभिलेख
स्तम्भ कठोर रेतीले पत्थर का बना है एवं चौकोर है । यह ९५ सें. मी. ऊंचा है। प्राप्त अभिलेख ७ पंक्तियों का है। इसका आकार २८x२२ सें. मी. है। इसकी भाषा संस्कृत है। एवं गद्यमय है । अक्षरों की बनावट अभिलेख के समय की नागरी लिपि है, परन्तु बनावट भद्दी है | व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से इसमें कोई विशेषता नहीं है । पंक्ति १ में पौष के स्थान पर पौख उत्कीर्ण किया गया है ।
स्तम्भ के चारों ओर रेखा चित्र बने हैं जिनमें एक व्यक्ति क्रमश: अश्व पर सवार, शस्त्र धारण किए हुए, शिवलिंग की पूजा करते हुए एवं अन्त में एक शय्या पर लेटे हुए दिखाया गया है । उसके पास एक स्त्री, संभवतः उसकी पत्नी, बैठी हुई है। अभिलेख की तिथि अंकों में संवत् १२४३ पौष सुदि ५ गुरुवार दी हुई है। विगत वर्ष पूर्णिमान्त के आधार पर गणना करने पर यह गुरुवार, २८ दिसम्बर, ११८६ ई. के बराबर निर्धारित की जा सकती है । इसका प्रमुख ध्येय महाकुमार हरिश्चन्द्रदेव के अधीन किसी सेनापति की युद्ध में मृत्यु का उल्लेख करना है । इसकी पुष्टि स्तम्भ के चारों ओर बने रेखाचित्रों से होती है ।
अभिलेख का प्रारम्भ उपरोक्त तिथि से होता है जो प्रथम दो पंक्तियों में है। अगली दो पंक्तियों में शासनकर्ता महाकुमार हरिश्चन्द्रदेव का उल्लेख है । अगली तीन पंक्तियों में विजयसिंह के पुत्र बिम्बसिंह द्वारा युद्ध में देवत्व प्राप्त करने का उल्लेख है । परन्तु यह भाग काफी क्षतिग्रस्त है । लगता है इससे आगे भी कुछ उत्कीर्ण है परन्तु यह पूर्णत: टूट गया है । ऐतिहासिक दृष्टि से इसका बहुत महत्व है । इसके आधार पर महाकुमार हरिश्चन्द्रदेव के शासन काल में आठ वर्ष की वृद्धि हो जाती है। उसने ११५७ ई. से ११८६ ई. तक तो निश्चित ही शासन किया था। उसके बड़े पुत्र महाकुमार उदयवर्मन् का अभिलेख ( क्र. ५७ ) ११९९ ई. का प्राप्त होता है ।
अभिलेख में उस शत्रुनरेश अथवा संघर्ष का कोई विवरण प्राप्त नहीं है जिसके विरुद्ध हमारे अभिलेख का वीर देवत्व को प्राप्त हुआ था । परन्तु तत्कालीन राजनीतिक स्थिति पर विचार करने से ज्ञात होता है कि यादव नरेश भिल्लम् पंचम्, जो ११८५ ई. में सिंहासनारूढ़ हुआ था, उत्तर में मालव राज्य पर आक्रमण कर रहा था । संभव है कि परमार नरेश विंध्यवर्मन् (११७५-११९४ ई.) से उसका संघर्ष हुआ हो। इस आक्रमण के समय, साम्राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित महाकुमार हरिश्चन्द्र की सेनाओं ने यादव आक्रमण को रोकने का प्रयत्न किया होगा, जिस युद्ध में प्रस्तुत अभिलेख का वीर देवत्व को प्राप्त हो गया । यादव नरेश भिल्लम् पंचम् के ११८९ ई. के मुगी प्रस्तर अभिलेख से विदित होता है कि वह मालव नरेश के लिए सिरदर्द बन गया था ( बाम्बे गजटीयर, भाग १, उपभाग १, पृष्ठ ५१८ ) । इस प्रकार प्रस्तुत अभिलेख का संबंध उपर्युक्त संघर्ष से स्थापित किया जा सकता है ।
(मूलपाठ)
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संवत् १२ [४] ३ पौख (ष) शु
दि ५ गुरौ महा कु
मार श्री हरिश्चंद्र
देवराज्ये विजय ( ? ) सीं (सिं) -
हसुत बिम्ब सीं (सिं ) ह
यु[धी]त्य ( युध्वा) देवै :
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तालादेव
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