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होशंगाबाद अभिलेख
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दान दिया है और वहां ग्रामवासियों पटेलों लोगों तथा कृषकों द्वारा इस ग्राम में जो उत्पन्न होने वाला भाग भोग कर हिरण्य आदि आज्ञा मान कर सभी कुछ इन दोनों के लिए देते रहना चाहिये । और इस का समान रूप फल जान कर हमारे वंश में व अन्यों में उत्पन्न होने वाले भावी भोक्ताओं को हमारे द्वारा दिए गये इस धर्मदान को मानना व पालन करना चाहिये। क्योंकि-- ४. सगर आदि अनेक नरेशों ने भूमि का भोग किया है और जब २ यह भूमि जिसके
अधिकार में रही है तब २ उसी को उसका फल मिला है। ५. जो भूमि को ग्रहण करता है और जो भूमि को देता है, वे दोनों ही पुण्यकर्म करने के
कारण स्वर्ग के भागी होते हैं। हे इन्द्र ! शंख, श्रेष्ठ आसन, छत्र, श्रेष्ठ अश
श्रेष्ठ वाहन ये सभी भूमिदान के फल रूपी चिन्ह हैं। जो मन्द बुद्धि पापों से आवृत होकर भूमि का हरण करता है अथवा हरण करवाता है वह वरुण द्वारा पाश में बांधा जावेगा और तीर्यग योनि में उत्पन्न होगा। जो स्वयं के द्वारा दी गई अथवा अन्य के द्वारा दी गई भूमि का हरण करता है, वह सात हजार वर्ष तक विष्टा का कीड़ा बनता है। एक सुवर्ण (मुद्रा) एक गाय' या एक अंगुल भूमि का जो अपहरण करता है वह प्रलय
होने तक नरक में रहता है। १०. गाय पृथ्वी व सरस्वती के तीन (श्रेष्ठ) दान कहे गये हैं, ये दोहने बाहने व प्रदान
करने से सात पीढ़ियों तक पवित्र करते हैं। __ यहां पूर्व के नरेशों ने धर्म व यश हेतु जो दान दिये हैं वे त्याज्य एवं के के समान जान
कर कौन सज्जन व्यक्ति उसे वापिस लेगा। १२. सभी इन होने वाले नरेशों से रामचन्द्र बार बार याचना करते हैं कि यह सभी नरेशों के लिये
समान रूप धर्म का सेतु है । अतः अपने २ समय में आपको इसका पालन करना चाहिये । १३. मेरे वंश में उत्पन्न अथवा अन्य नरेशों के वंशों में उत्पन्न पृथ्वी पर जो भावो नरेश पापनिवृत्त
मन से मेरे भूमिदान को पालन करेंगे, मैं उनके चरण कमलों में अपना सिर नमन करता हूँ । ऋषियों के इन वचनों का क्रम से अवलंबन करें-- ... . १४. इस प्रकार लक्ष्मी व मनुष्य जीवन को कमलदल पर पड़ी जलबिन्दु के समान चंचल
समझ कर और इन सब पर विचार कर मनुष्यों को परकीर्ति नष्ट नहीं करना चाहिये । इति । ये हस्ताक्षर स्वयं महाकुमार श्री लक्ष्मीवर्मदेव के पुत्र महाकुमार श्री हरिश्चन्द्रदेव के हैं, जो परमार कुल रूपी कमल' का सूर्य है। लक्ष्मी प्रसन्न हो । रामचन्द्र के हस्ताक्षर ।
होशंगाबाद का महाकुमार हरिश्चन्द्र कालीन प्रस्तर-स्तम्भ अभिलेख
(संवत् १२४३=११८६ ई.) प्रस्तुत अभिलेख एक छोटे चौकोर प्रस्तर-स्तम्भ पर उत्कीर्ण है जो होशंगाबाद में मुख्य डाकघर के पास एक चबूतरे पर स्थापित है। १९७२ ई. में आल इंडिया ओरियंटल कांफ्रेंस के उज्जैन अधिवेशन में हलधर पाठक ने एक लेख में इस का उल्लेख किया। वर्तमान लेखक ने स्थान पर इसका अध्ययन कर नोटस तैयार किये। ..
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