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परमार अभिलेख
किलो है । अभिलेख ४१ पंक्तियों का है। प्रथम ताम्रपत्र पर १९ व दूसरे पर २२ पंक्तियाँ हैं। दूसरा ताम्रपत्र काफी भद्दी हालत में है, इसमें उत्कीर्णकर्ता की छेनी के निशान भी बहुत हैं। इस पर पंक्ति ३५-४१ के बीच दोहरी पंक्ति के चौकोर में गरूड़ का रेखाचित्र है जो दोनों हाथ जोड़े खड़ा है। यह परमार राजकीय चिन्ह है।
अभिलेख के अक्षर १२वीं सदी की नागरी लिपि में हैं। बाद के अक्षर शुरू के अक्षरों से काफी छोटे हैं। भाषा संस्कृत है व गद्य-पद्यमय है। इसमें १५ श्लोक हैं। शेष गद्यमय है। श्लोक १४ के बाद भी एक वाक्य गद्य में है। व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, श के स्थान पर स, स के स्थान पर श, म् के स्थान पर अनुस्वार, अनुस्वार के स्थान पर म्, य के स्थान पर ज का प्रयोग किया गया है। र के बाद का व्यञ्जन दोहरा है। कुछ अन्य भी अशुद्धियाँ हैं जिनको पाठ में ठीक कर दिया है।
तिथि पंक्ति क्र. ११-१३ में शब्दों व अंकों में लिखी है। यह विक्रम संवत् १२५६ वैसाख सुदि १५, विशाखा नक्षत्र, परिध योग, रविवार, महाविशाखा पर्व है। यह सोमवार १२ अप्रेल, ११९९ ई. के बराबर है।
इसका प्रमुख ध्येय महाकुमार उदयवर्मदेव द्वारा विन्ध्य मण्डल में नर्मदापुर प्रतिजागरणक वोडसिरस्तक ४८ के मध्य गुणौरा ग्राम के दात करने का उल्लेख करना है। दानप्राप्तकर्ता ब्राह्मण गर्ग गोत्री, गर्ग शैन्या आंगिरस तीन प्रवरों वाला, वाजसनेय शाखा का अध्यायी, अग्निहोतृ यज्ञधर का पुत्र द्विवेद पुरोहित मालू शर्मा था।
दानकर्ता नरेश की वंशावली में सर्वश्री यशोवर्मन्, जयवर्मन्, लक्ष्मीवर्मन्, हरिश्चन्द्र व उदयवर्मन् के नामोल्लेख हैं। इनमें से प्रथम दो के नामों के साथ पूर्ण राजकीय उपाधियाँ परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर और शेष तीन नामों के साथ महाकुमार की कनिष्ठ उपाधियां लगी हैं।
अभिलेख से यह तो ज्ञात होता है कि उदयवर्मन् का पिता हरिश्चन्द्र था। परन्तु यह , मालूम करने में कठिनाई है कि वह सिंहासनारूढ़ कब हुआ था। पूर्ववणित अभिलेख क्र. ५४ से
हरिश्चन्द्र की तिथि ११८६ ई. ज्ञात है। अतः उदयवर्मन् उस के बाद प्रस्तुत अभिलेख की तिथि से पूर्व कभी गद्दी पर बैठा होगा। भविष्य में अन्य साक्ष्य की प्राप्ति तक यह प्रश्न अधूरा ही मानना चाहिये।
भौगोलिक स्थानों में रेवा आधुनिक नर्मदा नदी है। नर्मदापुर देवास जिले में नेमावर है जो नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है (यहाँ से प्राप्त प्राचीन अवशेषों के लिए देखिये ए. रि. आ. स. वे. स., १९२०-२१, पृष्ठ ९८ व आगे)। गुवाडाघाट नेमावर के पास नर्मदा नदी पर बना घाट है जो वर्तमान में पास के ग्राम गवाडिया के नाम से विख्यात है। गुणौरा ग्राम नेमावर से उत्तर-पूर्व की ओर २५ कि. मी. दूर गनोरा ग्राम है। विन्ध्यमण्डल वह भूभाग है जिसमें नेमावर क्षेत्र स्थित है। इस प्रकार अभिलेख के सभी स्थल देवास जिले में खातेगांव परगना के अन्तर्गत आते हैं।
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