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________________ पिपलियानगर अभिलेख २१९ १३. नरेश त्रैलोक्यवर्मन् के उत्तर पट्टक में स्थित . . . . । ....प्रत्येक वषभार के भांड पर एक विंशोपक दान में दिये। १४. अलंकारों से सुशोभित सदाचार से गुणवती प्रिया के समान सुशोभित इस प्रशस्ति को कौन कण्ठ में धारण नहीं करेगा। इसे श्रेष्ठ ब्राह्मण कुल में उत्तर. . . . . . । १५. . . . . इस स्थान की कीर्ति को व्यक्त करने वाली यह....के द्वारा लिखी गई। बुद्धिमान सूत्रधार वासुदेव के द्वारा उत्कीर्ण की गई। ९. संवत् १२१६ चैत्र बदि १२ । सिद्धि हो। कल्याण हो। महाश्री मंगल करे। (५३) पिपलियानगर का महाकुमार हरिश्चन्द्र देव का ताम्रपत्र अभिलेख (विक्रम संवत् १२३५=११७८ ई.) प्रस्तुत अभिलेख तीन ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है जो १८३६ ई. में शाजापुर जिले में स्थित पिपलियानगर में एक किसान को खेत में हल चलाते समय प्राप्त हुए थे। विल्किसन ने इसका विवरण ज. ए. सो. ब., भाग ७, १८३८, पृष्ठ ७३६-७४१ पर दिया। कीलहान की उत्तरी अभिलेखों की सूचि क्र. १७२; भण्डारकर की उत्तरी अभिलेखों की सूचि क्र. ३८३ एवं हरिहर निवास द्विवेदी के ग्रन्थ 'ग्वालियर राज्य के अभिलेख' क्र. ८ पर इसका उल्लेख है। ताम्रपत्र वर्तमान में कहां हैं सो अज्ञात है ।। ताम्रपत्रों के आकार, वजन, पंक्तियां, गरुड़ चिन्ह, अक्षरों की बनावट, लेख की स्थिति इत्यादि के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है। इसमें १४ श्लोक हैं, शेष गद्यमय है । इसमें दो तिथियां हैं । प्रथम तिथि व्यतीत विक्रम काल १२३५ पौष वदी अमावस्या है। यह सोमवार, ११ दिसम्बर, ११७८ ई. के बराबर है । दूसरी तिथि संवत्सर १२३६ वैसाख पूर्णिमा है जो सोमवार, २३ अप्रैल, ११७९ ई. के बराबर है। . इसका प्रमुख ध्येय महाकुमार हरिश्चन्द्रदेव (पूर्ववणित अभिलेख क्र. ५१ में हरिचन्द्रदेव) 7 नीलगिरी मण्डल में अमडापद्र प्रतिजागरणक से संबद्ध पलसवाडा ग्राम व सम्मति ग्राम से कुछ भाग और गुणपुर दुर्ग के बाहर पास में बनी दुकानें व अनाज आदि दान में देने का उल्लेख करना है । दान प्राप्तकर्ता दो ब्राह्मण हैं। प्रथम, कात्यायन गोत्री, त्रिप्रवरी, पंडित सिंह का पुत्र पंडित दशरथ शर्मा है जिसको पलसवाडा ग्राम से दो अंश भूमि मिली। दूसरा, पराशर गोत्री, त्रिप्रवरी, पंडित देलू का पुत्र पंडित मालूण शर्मा है जिसको एक अंश प्राप्त हुआ। आगे भी दान का कुछ अन्य विवरण है, परन्तु उसमें अंशों का निर्धारण नहीं है। दोनों दानों का विवरण कुछ इस प्रकार दिया जा सकता है (१) पलसवाडा अथवा सवाडा ग्राम से ३ अंश भूमि, (२) एक सहस्र गायें, (३) गुणपुर दुर्ग के तल' अर्थात् पास मैदान में बनी दुकानें, (४) नीलगिरी मण्डल से प्राप्त कुडव के नाप से ४० मानि (मन) धान्य (कोष के अनुसार चौथाई प्रस्थ अथवा १२ मुट्ठी अनाज एक कुडव के बराबर होता है)। परन्तु दोनों ब्राह्मणों को प्राप्त होने वाले अंशों के निर्धारण साफ साफ नहीं दिए गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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