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________________ भोपाल' अभिलेख २०९ __पंक्ति क्र. ३-७ में दानकर्ता शासक की वंशावली है जिसके अनुसार सर्वश्री नरवमदेव, यशोवर्मदेव, त्रैलोक्यवर्मदेव व हरिचन्द्रदेव के उल्लेख हैं। इनमें से प्रथम दो के नामों के साथ पूर्ण राजकीय उपाधियां परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर और अंतिम दो के साथ महाकुमार की कनिष्ट उपाधियां लगी हुई हैं। पं. ४० में मुख्यादेश यदि व्यक्ति का नाम है तो वह इस ग्रामदान का दूतक था। उपरोक्त ग्राम-भूमि को १६ भागों में विभाजित कर १९ ब्राह्मणों में बांट दिया गया। दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मणों का विवरण पंक्ति क्र. १६-२७ में दिया गया है। इसमें उनके गोत्र, पिता का नाम व प्रत्येक को प्राप्त भ-अंशों का उल्लेख है, जो निम्नानुसार है :क्र. नाम पिता का नाम गोत्र प्राप्त १. आवसथिक श्रीधर अग्निहोत्री भारद्वाज सांकृत्य . १ २. विपाठी गर्तेश्वर त्रिपाठी नारायण भारद्वाज .. ३. द्विवेद उद्धरण द्विवेद क्षीरस्वामिन् कृष्णानय . ... ४. द्विवेद यशोधवल द्विवेद वत्व (त्स) अद्वाह ५. पंडित मधुसूदन आवसथिक देल्ह काश्यप ६. द्विवेद पाहुल द्विवेद सीले शौनक ७. पंडित सोमदेव आवसथिक देल्ह काश्यप ८. द्विवेद पाल्हक द्विवेद यशोधवल अद्वाह .. .. ९. पंडित रणपाल पंडित धामदेव गौतम ... ... .१. १०. द्विवेद गंगाधर द्विवेद सोता ११. " लक्ष्मीधर " क्षीर स्वामिन् .. कृष्णात्रेय १२. " श्रीधर " सीले शौनक १३. ठकुर वा[च्छुक ठकूर वील्हे भारद्वाज .. .. १ कुलधर शांडिल्य ....... १ १५. द्विवेद वाल्हुक द्विवेद गोल्हे गौतम . . . . . . १६. ठकुर रासल ठकुर कुलधर . शांडिल्य .. १७. " विष्णु पंडित सोण्डल . काश्यप . . ३ ... १८. वटुक अहड़ ... .. ठकुर कु[ञ्ज] कौंडिल्य . .३ . १९. वटुक महण... ... . ' विजपाल ... काश्यप इन दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मणों के विवरण पर विचार करने से ज्ञात होता है कि १३ ब्राह्मणों को प्रत्येक को एक भाग और ६ को प्रत्येक को १ भाग प्राप्त हुआ। दो ब्राह्मण क्र. ४ व ८ पिता व पुत्र रूप में संबंधित थे; क्र. ३ व ११, ५ व ७, ६ व १२ और १४ व १६ भाई रूप में संबंधित थे, जबकि अंतिम दो क्र. १८-१९ विद्यार्थी मात्र थे। वंशावली में लिखे प्रथम दो नरेश धारा नगरी के परमार राजवंशीय शासक हैं । अगले दो शासक त्रैलोक्यवर्मन एवं हरिचन्द्र परमारवंश की उस शाखा से संबंधित हैं जो अपने अभिलेखों में स्वयं को 'महाकुमार' की उपाधि से विभूषित करते हैं। इस शाखा का प्रारम्भिक शासक महाकुमार लक्ष्मीवर्मन् था। उज्जैन ताम्रपत्र अभिले अनुसार यशोवर्मन् द्वारा संवत् ११९१ में अपने पिता की वार्षिकी पर दिये गये दान की पुष्टि संवत् १२०० में महाकुमार लक्ष्मीवर्मन् द्वारा की गई थी। लक्ष्मीवर्मन् ने यह पुष्टि अपने पिता के १४. " " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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