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( मूलपाठ )
१. सिद्धं । स्वस्ति || श्री [ ]ज्योभ्युदयश्च । अद्येह श्रीह [ष]पुर स्थितेन समस्त राजा.... २. त समस्त प्रक्रिया - विराजमान - महाकुमार- श्री त्रैलोक्यवदेवेन .
३. नवम्यां श्री चामुण्डस्वामिदेव - कारितं प्रतिष्ठायां पूजा- निमित्ते .
४. भोज्याय - सहितं देवत्रा (ब्रा) ह्मण - भुक्ति - वर्जं ग्रामोयं श्री चामुण्डस्वामि [ने] ...
परमार अभिलेख
(अनुवाद)
१. सिद्धं । स्वस्ति । लक्ष्मी व विजय का उदय हो । आज यहां हर्षपुर में ठहरे समस्त राजा... २. समस्त प्रक्रिया से विराजमान महाकुमार श्री त्रैलोक्यवर्मदेव के द्वारा ....
३. नवीं को श्री चामुण्डस्वामिदेव की प्रतिष्ठा की गई व पूजा निमित्त.
४. भोज के हेतु, साथ में देव ब्राह्मण द्वारा भोगे जा रहे भाग को छोड़ कर यह ग्राम श्री श्री चामुण्डस्वामि के लिये ......
(५१)
भोपाल का महाकुमार हरिचन्द्रदेव का ताम्रपत्र अभिलेख
(विक्रम सं. १२१४ = ११५७ ई.)
प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है जो १९३७ ई. में भोपाल नगर में मकान की नींव खोदते समय मिले थे। दैनिक हिदुस्तान टाईम्स दिनांक ३१-१ - १९३७ में इसका विवरण छपा। एन.पी. चक्रवर्ती ने एपि. इं. भाग २४, १९३७ पृष्ठ ३२५- ३४ पर इसका विवरण दिया । हरदत्त शर्मा ने पूना ओरियंटलिस्ट, १९३९, पृष्ठ २२ - २७ में इसका विवरण छापा । वर्तमान
में ताम्रपत्र सेंट्रल सर्कल, पुरातत्व विभाग, भोपाल में रखे हैं ।
ताम्रपत्रों का आकार २९.८५x१९.५ सें. मी. है। इनमें लेख भीतर की ओर खुदा है। दोनों में दो-दो छेद बने हैं जिनमें कडियां पड़ी हैं। किनारे मोटे हैं एवं भीतर को मुड़े हैं। वजन २.२६ कि.ग्रा. है । अभिलेख ४१ पंक्तियों का है । प्रथम ताम्रपत्र पर २१ व दूसरे पर २० पंक्तियां हैं। प्रथम ताम्रपत्र की स्थिति अच्छी है, परन्तु दूसरा सामान्य है । प्रथम ताम्रपत्र पर अन्त में कुछ स्थान खाली छूटा है। इसी प्रकार ताम्रपत्र के प्रारम्भ में कुछ भाग अपठनीय है। इसी पर पंक्ति २९-३५ के मध्य एक वर्ग में गरुड़ का रेखाचित्र है जो परमार राजवंश का राजचिन्ह है । अभिलेख के अक्षरों की बनावट १२वीं सदी की नागरी लिपि है । प्रथम ५-६ पंक्तियों
में अक्षरों की लम्बाई प्रायः 5 सें.मी. है, पर बाद में छोटे हैं । अन्त में नरेश के हस्ताक्षर दुगुने बड़े अक्षरों में हैं। भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है। इसमें ९ श्लोक हैं शेष गद्यमय है । व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि ब के स्थान पर व श के स्थान पर स, स के स्थान पर श, म् के स्थान पर अनुस्वार बना दिये गये हैं। कुछ स्थानों पर अनुस्वार, विसर्ग आदि छूट गये हैं । संधि का अभाव भी दृष्टिगोचर है । कहीं शब्द ही गलत उत्कीर्ण हैं । ये सभी उत्कीर्णकर्ता की लापरवाही से हैं ।
अभिलेख की तिथि पंक्ति ९-१० में विक्रम संवत् के व्यतीत १२१४ वर्ष में कार्तिक सुदी पूर्णिमा सोमग्रहण पर्व लिखी हैं । यह शनिवार १९ अक्तूबर, ११५७ ईस्वी के बराबर बैठती है । उस दिन पूर्ण चन्द्रग्रहण था । इसका प्रमुख ध्येय महाकुमार हरिचन्द्रदेव द्वारा महाद्वादशक मण्डल के अन्तर्गत विखिलपद्र द्वादशक से संबद्ध दादरपद ग्राम का दान करने का उल्लेख करना है। दान के समय नरेश श्री भैल्लस्वामी देव के मंदिर में था । दान का अवसर चन्द्र ग्रहण था ।
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