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________________ उज्जैन अभिलेख २०५ है। कहीं कहीं अक्षर ही गलत खुदे हैं। उत्कीर्णकर्ता की छेनी के निशानों से व्यर्थ में निशान बन गये हैं जिनके कारण पाठ पढ़ने में भ्रम होता है। ___अभिलेख में तिथि का अभाव है। यह अप्राप्य दूसरे ताम्रपत्र पर रही होगी। दान भूमि वटखेटक ३६. से सम्बद्ध मायमोडक ग्राम में रही होगी, क्योंकि वहीं पर स्थित अधिकारियों व ग्रामीणों के लिये आज्ञा दी गई है। दान देने के समय नरेश चन्द्रपुरी में था (पं. ९), परन्तु दानपत्र निस्सृत करते समय वर्द्धमानपुर में निवास कर रहा था (पं. ३)। दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मण राजब्रह्मपुरी दक्षिण देश के अन्तर्गत अद्रियलविदावरी स्थान से मालव राज्य में आया था। अन्य विवरण प्राप्त नहीं हैं। पंक्ति ४-७ में दानकर्ता नरेश की वंशावली में सर्वश्री उदयादित्यदेव, नरवर्मदेव, यशोवर्मदेव व जयवर्मदेव के उल्लेख हैं। इन सभी के नामों के साथ पूर्ण राजकीय उपाधियां परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर लगी हैं। पूर्ववणित अभिलेख क्र. ४४ में यशोवर्मन् का पुत्र लक्ष्मीवर्मन् लिखा है जिसके नाम के साथ कनिष्ठ उपाधियां लगी हैं। अतः निश्चित ही नरेश जयवर्मदेव उसका बड़ा भाई व राज्य का अधिकारी था। यहां प्रमुख समस्या यह है कि नरेश जयबर्मन् द्वारा पहले चन्द्रपुरी में ठहरे, दिये गये भूदान की घोषणा, बाद में वर्द्धमानपुर में निवास करते हुए क्यों की गई ? हमें ज्ञात है कि चन्द्रपुरी भोपाल क्षेत्र में है जबकि वर्द्धमानपुर धार के पास बदनावर है। जयसिंह सिद्धराज चौलक्य द्वारा ११८३ ई. धारा नगरी पर आक्रमण के समय जयवर्मन अपने भाईयों समेत भोपाल क्षेत्र में चला गया। वहीं पर चन्द्रपुरी में स्थित उसने भदान किया। परन्तु कुछ समय पश्चात ही जयसिंह सिद्धराज के अंतिम दिनों में अथवा ११४३ ई. में उसकी मृत्यु के बाद, जयवर्मन् ने अपनी सेना की सहायता से धारा नगरी समेत अपने साम्राज्य को पुनः प्राप्त कर लिया। संभवत: राज्य की पुनर्माप्ति के इस अभियान में विजययुक्त हो वर्द्धमानपुर में आवास करते हुए उसने उस दान की पुष्टि कर दी। अभिलेख में निर्दिष्ट भौगोलिक स्थानों में वर्द्धमानपुर वर्तमान बदनावर है जो परगने का मुख्यालय है (यहां से प्राप्त कुछ मध्ययुगीन प्रतिमाओं की पादपीठिका पर उत्कीर्ण अभिलेखों में भी यही नाम खुदा मिलता है। बदनावर से प्राप्त एक अभिलेख के लिये देखिये भण्डारकर सूचि, क्र. ३०६, प्राचीन अवशेषों के लिये देखिये इंडियन कल्चर, भाग ११, पृष्ठ १६६, सेन्ट्रल इंडिया गजेट सीरीज, पृष्ठ ४९४ व ५१३ आदि)। वटखेटक की समता भोपाल से दक्षिण पूर्व दिशा में १० कि. मी. दूर वरखेड़ा अथवा दक्षिण में २७ कि. मी. दूर वरखेड़ी नामक ग्राम से हो सकती है । चन्द्रपुरी भोपाल से दक्षिण-पूर्व में ४३ कि. मी. दूर चान्दपुर है। चान्दपुर से ६ कि. मी. उत्तर में मावोखेड़ा ग्राम संभवतः मायमोडक है। (मूलपाठ) १. ओं स्वस्ति । श्रीजयोऽभ्युदयश्च ॥ ... जयति व्योमकेशोऽस[1] यः सर्गाय विमत्ति [ता] ऎदवीं शिरसा लेखां जगद्वीजां कुराकृतिं ।।१।। तन्वन्तु वः स्मराराते: कल्या णमनिशं जटाः ।। .: कल्पान्तसमयोद्दामतडिद्वलय-पिंगलाः ॥२॥ . .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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