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भोपाल अभिलेख
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८-९ में उत्तरोक्त के छोटे भाई के पुत्र विजयसिंहदेव का नाम है जिसने अपने मित्र व संबंधी राष्ट्रकूट वंशीय राजपुत्र वाद्दिग से मिल कर युद्ध में किसी शत्रु पर विजय प्राप्त की थी। शत्रु का नाम संभवतः आगे की टूटी पंक्तियों में लुप्त हो गया है।
पूर्ववणित अभिलेख क्र. ४४ में हम उन परिस्थितियों का अध्ययन कर चुके हैं जिनके अन्तर्गत लक्ष्मीवर्मन् ने विदिशा-भोपाल क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था। परन्तु उसके अधीनस्थ राष्ट्रकूट वंशीय वाद्दिग कौन व कहां का शासक था सो अज्ञात है। दोहद जिले में पिपरिया से प्राप्त पांच सती-स्तम्भ अभिलेखों में से दो में २९ अगस्त, ११४१ ई. को राष्ट्रकूट महामाण्डलिक राणक जयसिंह द्वारा एक राजकुमार हेमसिंह के विरुद्ध युद्ध का वर्णन है। तीसरे में महाराजपुत्र गोपालदेव द्वारा राजकुमार रणशैल के विरुद्ध युद्ध का एवं चौथे में दामोदर द्वारा अन्य चार राजकुमारों के विरुद्ध युद्ध का वर्णन है (लिस्ट ऑफ इंस्क्रिप्शनस इन सी. पी. एण्ड बरार, क्र. ९८, पृष्ठ ५६, सम्पादन रायबहादुर हीरालाल)। उपरोक्त राष्ट्रकूट महामाण्डलिक राणक जयसिंह कया प्रस्तुत अभिलेख के राजपुत्र वाद्दिग से किसी प्रकार से सम्बद्ध था सो अनिश्चित है।
महाकुमार लक्ष्मीवर्मदेव ने वाद्दिग के साथ मिल कर किस शत्रु पर विजय प्राप्त की थी, उसके संबंध में ज्ञात करना सरल नहीं है। एक सुझाव यह है कि वह बल्लाल हो सकता है जिसके एक अभिलेख में उसको अवन्ति, धार व मालव का शासक कहा गया है (एपि. इं., भाग ८, पृष्ठ २०२)। परन्तु इस पर विश्वास करने में कठिनाई है। अभिलेख में किसी भौगोलिक स्थान का उल्लेख नहीं है।
मूलपाठ (प्रथम ओर) १. ओं स्वस्ति । श्रीजयत्यत्युदयश्च । श्री परम (मा)२. रान्वये समस्त-परिक्रिया-विराजमान । ३. महाकुमार श्रीलक्ष्मीवर्मदेव प्रख्यातः ।। ४. श्री अधिद्राणाचार्यान्वये महाराजपु५. व श्री अजयपालदेवपुत्र-महाराजपुत्र
___ (दूसरी ओर) ६. श्री पीथनदेवस्तत्पुत्र-महाराजपुत्र श्री ७. तेजोवर्मदेवस्तत्कनिष्ठ-भ्रातृव्य ८. श्री विजयसिंहेन संहित्य] च संव (ब)ध्य ९. राष्ट्रकूटान्वये राजपुत्र-श्री वाद्दिगे१०. न सह संजातयुद्धस्व (श्व) रि-विजयं (यः) क्र (क)
(तीसरी ओर) ११. तमिति । कृतिरियं रामपुत्र [श्री] विज१२. यसिंहस्य । तदन्वयः---पा-क१३. --कर।---- करा।--- १४. क--धला-----मंडले-- १५. :- क्कां प्र-- से तेन वा (प्रा)प्त ॥
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