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परमार अभिलेख
(४७) झालरापाटन का यशोवर्मन् का प्रस्तर अभिलेख
(सं. ११९९=११४२ ई.)
प्रस्तुत अभिलेख एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है जो अत्यन्त क्षतिग्रस्त है। इसका सामान्य विवरण प्रो. रि. आ. स. वे. स., १९०५-६, पृष्ठ ५६, क्र. २०९७ पर है। रिपोर्ट के अनुसार अभिलेख में परमार नरवर्मदेव व उस के पुत्र यशोवर्मन् के नाम पढ़े जा सकते हैं। इसके उपरान्त कुछ मंत्रियों का विवरण है। अन्त में तिथि विक्रमांक संवत् ११९९ फाल्गुन सुदि पढ़ने में आती है। यदि यह पूर्णिमा थी तो गुरुवार १२ फरवरी, ११४२ ई. के बराबर निश्चित की जा सकती है। उस दिन चन्द्रग्रहण था।
प्रस्तरखण्ड वर्तमान में कहां है सो अज्ञात है। इसी कारण इसका पूर्ण विवरण नहीं दिया जा रहा है।
भोपाल का महाकुमार लक्ष्मीवर्मदेव कालीन अभिलेख
(तिथि रहित) प्रस्तुत अभिलेख एक वर्गाकार प्रस्तर स्तम्भ पर उत्कीर्ण है जो १९५७ ई. में भोपाल में प्राप्त हुआ था। इसका विवरण ज. म.प्र. इ. प., क्र. २, १९६०, पृष्ठ ३-८ में सन्तलाल कटारे द्वारा छापा गया।
स्तम्भ १७३ सें. मी. ऊंचा है। इसमें अभिलेख तीन ओर खुदा है। चौथी ओर शिवलिंग व नंदि के रेखाचित्र हैं। खुले में पड़े रहने के कारण अभिलेख काफी क्षतिग्रस्त हो गया है। इसमें १५ पंक्तियां हैं। तीनों ओर ५-५ पंक्तियां हैं। प्रथम ओर लेख का आकार २९४ १४ सें. मी., दूसरी ओर २६४ १३ सें. मी. व तीसरी ओर २८४ १५ सें. मी. है। प्रत्येक पंक्ति में प्रायः १५ अक्षर हैं। अक्षरों की बनावट १२ वीं सदी की नागरी लिपि है। अक्षरों की बनावट न सुन्दर है न एक समान । अक्षर गहराई में भी कम है। भाषा संस्कृत है व गद्यमय है। लेखन कला की कोई विशेषता नहीं है। ऐ के लिये पृष्ठमात्रा एवं ओ के लिये अग्र व पृष्ठ मात्राओं का प्रयोग है।
___व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, श के स्थान पर स का प्रयोग किया गया है। र के बाद का व्यञ्जन दोहरा है। कुछ अक्षर ही गलत खुदे हैं। इनको पाठ में ठीक कर दिया है। अभिलेख में तिथि का अभाव है, परन्तु इसमें महाकुमार लक्ष्मीवर्मदेव का उल्लेख है। उज्जैन ताम्रपत्र अभिलेख (क्र. ४४) के आधार पर उसकी तिथि संवत् १२०० तदनुसार ११४३ ई. ज्ञात है। अत: प्रस्तुत अभिलेख भी उसी के आसपास होना चाहिये। अभिलेख का ध्येय अनिश्चित है। परन्तु संभव है कि लक्ष्मीवर्मन् के अधीन एक सामन्त द्वारा शत्रु पर विजय प्राप्त करने की स्मृति रूप प्रस्तुत स्तम्भ की स्थापना करना ही इसका ध्येय रहा हो।
__पंक्ति २-३ में परमार वंशीय महाकुमार लक्ष्मीवर्मन् के शासन करने का उल्लेख है। • अगली पंक्तियों में उसके अधीन अधिद्राणाचार्य नामक वंश के अजयपालदेव, पीथनदेव, तेजोवर्मदेव
के पिता-पुत्र के अनुरूप उल्लेख हैं। इनके नामों के साथ महाराजपुन उपाधि लगी है। पंक्ति
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