SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उज्जैन अभिलेख इति । सम्व (संवत् ११९२ मा[र्ग] व १३. दि ३ ।। दू ( दूतका : ) राजपुत्र श्री देवधर -प्रभृतयः ॥ १४. मंगलं महाश्री ॥ ( ? ) १५. स्वहस्तोय महाराज श्रीमद् यशोवर्मदेवस्य । १६. अधि ( ? ) । श्रीः ॥ पुरोहित-ठक्कुर श्री वामनस्वामि-ठक्कुर श्री पुरुषोत्तम महाप्रधान (अनुवाद) १. श्रीमती मोमलदेवी की वार्षिकी पर कल्पित भोगे जा रहे देवलपाटक से दो हल भूमि ( ? ) माप्यकीय ब्राह्मण द्वारा नापी गई दो हल भूमि २. से संबद्ध ठीकरी ग्राम विभाग से दो व्यक्तियों के लिये सतह निवर्तन भूमि से युक्त ग्यारह हल भूमि ३. ऊपर लिखे समस्त लघुबैंगणपद्र ग्राम तथा आधे ठिक्करिका ग्राम से संबद्ध निज सीमा तृणयुक्त गोचर तक साथ में वृक्ष-समूह की पंक्तियां ४. साथ में हिरण्य भाग भोग उपरिकर और सब प्रकार की आय सहित, माता पिता व स्वयं के पुण्य व यश की वृद्धि के हेतु शासन द्वारा जल हाथ में ले कर ५. दान दी है। इसको मान कर जिस प्रकार सदा से दिया जाने वाला भाग भोग कर हिरण्य आदि इस आज्ञा को सुन कर सभी इन दोनों के लिये २०१ ६. देते रहना चाहिये । और इसका समान रूप फल जान कर हमारे वंश में व अन्यों में उत्पन्न होने वाले भावि भोक्ताओं को हमारे द्वारा दिये गये इस धर्मदान को मानना ७. व पालन करना चाहिये । और कहा गया है- सगर आदि अनेक नरेशों ने वसुधा भोगी है और जब जब यह पृथ्वी जिसके अधिकार में.. रही है तब तब उसी को उसका फल मिला है ||१|| यहां पूर्व के नरेशों ने धर्म व यश हेतु जो दान दिये हैं त्याज्य एवं कै के समान जान कर कौन सज्जन व्यक्ति उसे वापिस लेगा ||२|| हमारे उदार कुलक्रम को उदाहरण रूप मानने वालों व अन्यों को इस दान का अनुमोदन करना चाहिये क्योंकि इस बिजली की चमक और पानी के बुलबुले के समान चंचल लक्ष्मी का वास्तविक फल ( इसका ) दान करना और ( इस से ) परयश का पालन करना ही है || ३ || सभी इन होने वाले नरेशों से रामभद्र बार बार याचना करते हैं कि यह सभी नरेशों के लिये समान रूप धर्म का सेतु है, अत: अपने अपने कालों में आपको इसका पालन करना चाहिये ||४| इस प्रकार लक्ष्मी व मनुष्य जीवन को कमलदल पर पड़ी जलबिन्दु के समान चंचल समझ कर और इन सब पर विचार कर मनुष्यों को परकीर्ति नष्ट नहीं करना चाहिये ।। ५ ।। १२. संवत् ११९२ मार्ग (शीर्ष) १३. वदि ३ । दूतक पुरोहित ठाकुर श्री वामनस्वामि, ठक्कुर श्री पुरुषोत्तम, महाप्रधान राजपुत्र श्री देवधर आदि । १४. मंगल व श्री वृद्धि हो । १५. ये स्वयं महाराज श्रीमत् यशोवर्मदेव के हस्ताक्षर हैं । १६. अधि । श्री । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy