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________________ १९५ उज्जैन अभिलेख ____ एवमाकलय्य-अद्वै]ल[f ?]वद्धावरि [स्थ]नि-वि[निर्ग]त-भ[T]र१२. द्वाजगो[व]य भारद्वाजांगिरसवा (बा)हस्पत्य त्रिः (त्रि) प्रवराय-आश्वलायन . शाखिने दक्षिणा[याता ?] कर्णाट वा (बा)ह्मण-द्विवेद[3]क्कुर- .. १३. श्री [म]हिरस्वामि पौत्र-श्री विश्वरूप-सुत-आवस्थिक-श्रीधनपालाय उपरिलिखित वडोदग्रा. मुथवणकग्रामौ सव१४. क्ष-मालाकुलौ निधिनिक्षेपसहितौ वापीकूपतडागान्वितौ चतुष्कंकटविशुद्धौ [च] द्रार्क यावदुदकपूर्वकत्या शा१५. सनेन प्रदतौ । सम्व (संवत्सर शतद्वादशकेष[ ] श्रावण-शुदि पंचदश्यां सोमग्रहण-पर्वणि श्रीमत्पितृ-श्रेय[][] [पुनरेवा१६. स्माभिः एतौ ग्रामी उदकपूर्वकतया शासनेन प्रदतौ । तदनयो[ ] ग्रामय [1] निवासि-समस्त पट्टकिलादि-लोकस्तथा क१७. र्षक[श्च] याथो]त्पद्यमानकरहिरण्य-भाग-भोगादिकमाज्ञा-श्रवण-विधेयाभूत्वा सर्वममुषमै समुपनेतव्यम्-सामा१८. [न्यं च] तत्पुण्यफलं वु(बु) वा अस्मद्वंशजैरन्यैरपि भाविभूपतिभिः धर्मादायोय मनामन्तव्यः पालनीयश्चेति । यतो। वहुभि[ ]व्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः ।। यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् ।।४।। स्वदत्तां परदन्तां (तां) वा यो हरेत् वसुन्धराम् । षष्टि वर्ष [स]२०. .. ___ हस्राणि विष्टा (ष्ठा)यां जायते कृमिः ।।५।। सनेितान्भाविनः पार्थिवेन्द्रान् भूयो भूयो याचते रामभद्रः । सामान्योयं धर्मसे (अनुवाद) १. ओं। स्वस्ति । लक्ष्मी व विजय वृद्धि हो । ___ जो संसार के बीज के समान चन्द्र की कला को संसार की उत्पत्ति हेतु मस्तक पर धारण करते हैं, आकाश ही जिनके केश हैं, ऐसे महादेव सर्वश्रेष्ठ हैं ॥१॥ प्रलयकाल में चमकने वाली विद्युत् की आभा जैसी पीली, कामदेव के शत्रु, शिव की जटायें तुम्हारा कल्याण करें ॥२॥ २. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री ३. उदयादित्य देव के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री नरवर्मदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर ४. श्री यशोवर्मदेव के पादानुध्यायी सब प्रकार की ख्याति से युक्त पांच महाशब्दों के अलंकार को प्राप्त करनेवाले महाकुमार श्री लक्ष्मीवर्मदेव वराजमान हो श्रीयुत ५. महाद्वादशक मण्डल में श्रीयुत राजशयन भोग में सुरासणी से सम्बद्ध वडोद ग्राम तथा सुवर्ण प्रासादिका से सम्बद्ध उथवणक ग्राम-~दोनों ग्रामों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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