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परमार अभिलेख
१८. शुद्ध वाक्य बोलने वाला, जगदेव के संतोषों से मन से भी पवित्र द्वैत भाव को नष्ट . करने वाला, अर्द्धनारी नटेश्वर शिवजी को बाल्यावस्था से ही नमन करने वाला, डुलने
वाले चामरों के बिना, निश्चल विशाल राज्यलक्ष्मी को धारण करता हुआ द्वेषी नरेशों का. दमन करता है।
रता है। १९. उसकी पद्मावती नामक पत्नी, जो कमलपत्र के समान विशाल दो नेत्रों वाली, कमल के
समान मुख वाली, गौर वर्ण वाली जो तीनों जगत में विख्यात है, ने इस नगर में,
जिसकी कलुषिता दृढ़तापूर्वक हर ली गई, निम्बादित्य का यह प्रासाद (मंदिर) बनवाया। २०. हृदय को स्पर्श करने वाली, सज्जनों पर ही जिसका भार स्थापित है, अश्वत्थामा कवि ___ की ऐसी यह कृति जगत के कानों से समागम को प्राप्त करे।
(४४) उज्जैन का महाराजाधिराज यशोवर्मन् व महाकुमार लक्ष्मीवर्मन् का
ताम्रपत्र अभिलेख (सं. ११९१ व १२०० = ११३४ व ११४३ ई.) प्रस्तुत अभिलेख एक ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण है जो कुछ अन्य' ताम्रपत्रों के साथ मेजर टाड को १८१२ ई. में उज्जैन से मिला था। इसका उल्लेख ट्रां. रा. ए. सो., भाग १, १८२३, पृष्ठ २६७, २३०-२३९ एवं ४६३--४६६ और मिसलेनियस एस्सेज़, भाग २, पृष्ठ २९७--३१४ पर किया गया । इसका सम्पादन इं. ऐं., भाग १९, १८९०, पृष्ठ ३४५--३५३ पर प्रो. कीलहान ने किया । ताम्रपत्र वर्तमान में ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन में रखे हैं ।
अभिलेख का आकार ४२ x २४ सें.मी. है। यह एक ही ताम्रपत्र है जो संपूर्ण अभिलेख का केवल पूर्वाद्ध है । इसमें लेख भीतर की ओर लिखा है । दो छेद बने हुए हैं । किनारे कुछ मोटे हैं एवं भीतर की ओर मुड़े हैं। - अभिलेख २० पंक्तियों का है । अंतिम पंक्ति के बाद एक चिन्ह लगा है जो अभिलेख के दूसरे ताम्रपत्र पर चालू रहने का सूचक है । अभिलेख अत्यन्त घिसा हुआ है जिससे इसको पढ़ने में कुछ कठिनाई होती है । इसके अक्षरों की बनावट १२वीं सदी की नागरी लिपि है । अक्षरों की लंबाई प्रायः ६ सें. मी. है । भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है । इसमें ६ श्लोक हैं जिनमें अंतिम अपूर्ण है । शेष गद्य में है।
___ व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, म् के स्थान पर अनुस्वार एवं अनुस्वार के स्थान पर म का प्रयोग किया गया है । र के बाद का व्यञ्जन दोहरा बना दिया है । पंक्ति क्र. ४, ५, ६ में अनावश्यक रूप से दण्ड बना दिये गये हैं । ये संभवतः रिक्त स्थान की पूर्ति हेतु बना दिये गये हैं । कुछ अन्य त्रुटियां भी हैं जो पाठ में सुधार दी गई हैं । इन त्रुटियों को काल व प्रदेश के मान से सामान्य ही कहा जाना चाहिये ।
अभिलेख में दो विभिन्न तिथियों का उल्लेख है । प्रथम तिथि पंक्ति ७ में श्री विक्रम संवत् ११९१ कार्तिक सुदि ८ है जो शनिवार २७ अक्तूबर, ११३४ ई. के बराबर है । दूसरी तिथि पंक्ति १५ में संवत्सर १२०० श्रावण सुदि १५ है । इस दिन चन्द्रग्रहण था । यह बुधवार २८ जुलाई, ११४३ ई. के बराबर है । इस दिन दोपहर ११.४३ बजे पूर्ण चन्द्रग्रहण था।
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