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________________ १८६ परमार अभिलेख देखते हुए खटकता है। परन्तु यह पूर्ववणित डोंगरगांव अभिलेख (क्र. ४२) से बहुत दूर नहीं रखा जा सकता। ____ अभिलेख का प्रमुख ध्येय जगद्देव के शासनकाल में उसके अमात्य लोलार्क की पत्नी द्वारा निंबादित्य के मंदिर के निर्माण का उल्लेख करना है जो अनुमानतः वही रहा होगा जिसके प्रांगण में बने मंडप में यह प्राप्त हुआ है। अभिलेख का महत्व इस तथ्य में है कि इसमें भोजदेव एवं उदयादित्य के जगद्देव के साथ संबंधों की घोषणा है। साथ ही जगद्देव की विभिन्न विजयों का विवरण है। श्लोक क्र. ४ में परमार एवं उसकी पौराणिक उत्पत्ति का विवरण है। श्लोक ६ में उल्लेख है कि भोज जगद्देव का पितृव्य (चाचा) तथा उदयादित्य पिता था। श्लोक ७-१२ में जगद्देव द्वारा क्रमशः आंध्रदेश, चक्रदुर्ग नरेश, दोरसमुद्र नरेश मलहर, गुर्जर नरेश जयसिंह एवं कर्ण पर प्राप्त की गई विजयों का काव्यात्मक उल्लेख है। इससे आगे के श्लोकों में उसके अमात्य लोलार्क एवं उसकी पत्नी द्वारा मंदिर निर्माण का विवरण है। .. - 'जगद्देव की विजयों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि उनमें से प्रथम तीन विजयें अपने आश्रयदाता चालुक्य विक्रमादित्य षष्टम् के सेनापति के रूप में प्राप्त की होंगी। इनका उल्लेख विक्रमादित्य षष्टम् की विजयों में भी प्राप्त होता है (अर्ली हिस्ट्री ऑफ दी डेक्कन--जी. . याज़दानी, पृष्ठ ३५४-७०)। - आंध्र देश--यह भूभाग गोदावरी व कृष्णा नदियों के बीच स्थित था। इसकी राजधानी वेंगी थी। इस समय वहां कुलतुङ्ग चोल शासक था। चोलों व कल्याणी के चालुक्यों में चिरकाल से शत्रुता थी। विक्रमादित्य षष्टम् ने वेंगी पर अनेक बार आक्रमण किये। अंततः १११८ ई. में उस पर अधिकार करने में सफल हो गया। इस अभियान में जगद्देव सेनापति था, इसी कारण उसके अभिलेख में इस विजय का उल्लेख है। चक्रदुर्ग--यह आधुनिक बस्तर जिले में चक्रकोट है। यह नागवंशीय नरेशों की राजधानी थी (विल्हण रचित विक्रमांकदेव चरित् , सर्ग ६) । चक्रदुर्ग नरेश पर जगद्देव ने आक्रमण कर विजय प्राप्त की एवं नरेश के हाथी भेंट में स्वीकार किये। दशरथ शर्मा के मतानुसार यह युद्ध १०७६ ई. से पूर्व ही हो चुका होगा (राजस्थान भारती, भाग ४, क्रमांक ४, पृष्ठ ४६.)। दोर समुद्र--यह मैसूर में वेलूर तालुके में हलेविद ग्राम के रूप में विद्यमान है। वहां जगद्देव ने मलहर के स्वामी पर विजय प्राप्त की थी। श्री डेरेट के मतानुसार यह विजय १०९३ ई. अथवा इसके आसपास प्राप्त की गई होगी (जे. डी. एम. डेरेट-दी होयसलजए मेडीवल' इंडियन रायल फैमिली, बम्बई, १९५७, पृष्ठ ३६)। प्रबंध चित्तामणि के साक्ष्य से ज्ञात होता है कि जगद्देव ने एक सीमांत नरेश को हराया था जो होयसल वंशीय ही हो सकता है, क्योंकि वह ही उसके राज्य की सीमा पर स्थित था। एन. पी. चक्रवर्ती का विचार है कि मलहर क्षोणीश होयसल नरेशों द्वारा ग्रहण किये गये कन्नड विरुद मलपरोलगंड का ही संस्कृत अनुवाद है। मलप अथवा मलह एक पहाड़ी जाति थी जिससे होयसल नरेश मूलतः संबंधित थे (एपि. इं., भाग २२, पृष्ठ ५८, पादटिप्पणी ५; एपि. क., भाग ६, प्रस्तावना, पृष्ठ १४)।। ... इसके विपरीत १११७ ई. के वेलूट तालुका अभिलेख में कुछ अन्य प्रकार का विवरण प्राप्त होता है-“दोरसमुद्र में उन्होंने (विष्णुवर्द्धन होयसल व बल्लाल होयसल) जगदेव की सेनाओं को परास्त कर, सिन्दूर से नहीं अपितु उसके हाथियों के रक्त से विजयश्री को रंगा, एवं गले के मुख्य हार के साथ उसके कोष पर भी अधिकार कर लिया" (एपि. क., भाग ५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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