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परमार अभिलेख
पुत्राणाम्प्रथमोऽसि राज्यविषयस्वामी भुजो दक्षिणः सर्वास्वेव हरित्सु जङ्गम [इ]
__ यत्सीमा जयो मूतिमान् । आत्मैवेति च सप्रसादमुदितों यः कुन्तलक्ष्माभृता ताद्रूप्यन्दधदेव दक्षिण दिशालङकारतां पुष्यति ।।९।। अर्थिप्रत्यर्थिनो यस्मिन्वा (बा)णैः स्वर्णैश्च वर्षति । दैन्यसैन्य[निधिं] मुक्त्वा ...
[ङिक]तमुपासते ।।१०॥ न स देशो न स ग्रामो न स लोको न सा सभा। न तन्नक्तं दिवं यत्र जगद्देवो न गीयते ।।११।। आचन्द्राक्र्क शासनीकृत्य येन क्ष्मापालेन श्री जगद्देवनाम्ना। पुण्याधा]रं डोङ्गरग्रामनामा ग्रामो दत्त: श्रीनिवा]सद्वि
जाय ।।१२॥ तद्दत्तडोङ्गरग्रामे श्रीनिधे[:] श्रेयसां निधेः । विद्यावृत्त निवासेन श्रीनिवासेन [सूनुना ॥१३।। पितुः पुण्योदयायतत्कारितं शिवमन्दिरम् ।
आकल्पं कल्पतां भूमिभूषणाय निरत्ययम् ।।१४।। अत्र देवाय ग्रामे[स्मि]न्यश्च [श्रीनिवासप्रहि] (सायहि) ८. [व्याघातं] कृत्वातिक्षिप्य. . . यो हर्तुमिच्छति स पञ्चमहापातकैलिप्यते । शक संवत् १०३४
नन्दन-संवत्सरे चैत्यां शासनं लिखितमिति । लेखको विश्वस्वामी]। १०३४ तथांके १५।
(अनुवाद) ओं। शिव को नमस्कार। १. विश्व की उत्पत्ति स्थिरता व संहार-तीनों करने वाला · · · · · · विश्व को जो भली
भांति चलाता रहता है वह आपकी रक्षा करे । २. जिसकी मेखला के आदि (तल) में कूर्म (स्थित) है. व अन्त (कटिबंध प्रदेश) में सूर्य
भ्रमण करता है ऐसा अर्बुद नाम से विख्यात पर्वत पश्चिम दिशा में है । ३. कामधेनु के हरण करने पर विश्वामित्र पर क्रोधित हो वसिष्ठ द्वारा वहां होमाग्नि __में से परमार की उत्पत्ति हुई। ४. उसके वंश में जो क्षात्रधर्म के कार्यों में सूर्य व चन्द्रवंशों से भी अधिक था भोजदेव
नामक नरेश हुआ जो राम के समान गुणों वाला था । ५. उसके पश्चात् उसका भाई उदयादित्य वृद्धि को प्राप्त हुआ जिसने मालव भूमि का
उद्धार किया जो तीन शत्रुओं के आक्रमण से (धूली में) मग्न हो गई थी। ६. जिसकी शुभ्रकीर्ति से दिशायें व सारा जगत बलपूर्वक व्याप्त हो गया, गुफायें शत्रुओं
से व्याप्त हो गई और सुदूर दिशायें स्तुति किये गये काव्यों से व्याप्त हो गई । ७. . अनेक पुत्रों के होने पर भी अपनी इच्छा के पुत्र की इच्छा करनेवाले उसके द्वारा
शिव की आराधना करने पर महिपति जगद्देव उत्पन्न हुआ।
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