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डोंगरगांव अभिलेख
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होता है कि यद्यपि सिद्ध (सिद्धराज जयसिंह) ने जगद्देव का पर्याप्त सम्मान किया था परन्तु यशस्वी परमादिन् (विक्रमादित्य षष्टम्) द्वारा तत्परतापूर्वक आमंत्रित किये जाने पर वह (जगद्देव) कुन्तल देश चला गया । ।
अपने त्याग, शौर्य व दानशीलता के कारण जगदेव की बहुत प्रसिद्धि हुई। अभिलेख के श्लोक क्र. ११ में लिखा है कि ऐसा कोई देश, ग्राम, लोक व सभा नहीं है जहां दिन रात जगद्देव की प्रशंसा नहीं गाई जाती। यह कोरी प्रशंसा नहीं है अपितु तथ्यों पर आधारित है। गुजरात के अनेक वृत्तान्तों में जैसे रासमाला (भाग १, पृष्ठ ११७ व आगे), प्रबंध चिन्तामणि (पृष्ठ १८६ व आगे), शारंगधर पद्धति (सुभाषित क्र. १२६१) आदि में जगद्देव के गुणों का बखान है।
रासमाला के अनुसार जगद्देव ८५ वर्ष की आयु तक जीवित रहा। मृत्यु से पूर्व उसने अपने पुत्र जगद्धवल को अपना राज्य सौंप दिया। परन्तु उपरोक्त का कोई अभिलेख हमें प्राप्त नहीं हुआ है। कुछ साक्ष्यों के आधार पर ज्ञात होता है कि मध्य प्रान्त का कुछ भाग इसके बाद भी परमारों के अधीन रहा।
अभिलेख में उल्लिखित भौगोलिक स्थानों में केवल डोंगरगांव का नाम मिलता है। यह वही स्थान है जहां से अभिलेख प्राप्त हुआ।
___ (मूल पाठ)
(श्लोक १-८, १०, ११, १३, १४ अनुष्टुभ; ९ शार्दूलविक्रीडित; १२ शालिनी) १. ओं नमः शिवाय।
कूज़न्व: पातु जगतां प्रभवस्थितिसं हि (ह्रि) तीः । तिस्र: --~- विश्वं यत्र [सुवर्तकः ।।१।। अस्त्यर्बु (ब्बु) द इति ख्यातः प्रतीच्यां दिशि पर्वतः । मेखलाद्यन्त संचारिकूर्मराज दिवाकरः ।।२।। ...... कामधेनु हृतवते]- ..
. विश्वामित्राय कुप्यतः। ...... वसिष्ठात्तत्र होमाग्नौ परमारो व्यजायत ।।३।। . . . तद्वन्से (शे) क्षत्रचरितः पुष्फ (प) वन्तान्वयाधिके । बभूव भोजदेवाख्यो राजा रामसमो गुणैः ।।४।। ततो रिपुत्रयस्कन्दैमग्नां मालव [मेदिनीम्]।
धरन्नुदयादित्यस्तस्य भ्राता व्यवर्द्धत ॥५॥ ..... यस्याच्छया दिशाः कीर्त्या भुवनानि परैर्गुहाः। [काष्ठाः] परा व (ब) लादेव काव्याप्यन्त चाथितः (तैः) ॥६॥ तस्य सत्स्वपि पुत्रेषु स्वसम्मत सुतैषिणः । हराराधनतो जज्ञे जगद्देवो माही]-..
___पतिः ॥७॥ दिवं प्रयाते पितरि स्वयं प्राप्तामपि श्रियम् । परिवित्तिभयात्त्यक्त्वा योऽग्रजाय न्यवेदयत् ।।८।।
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