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उज्जैन अभिलेख
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. (मूल पाठ) १-९ सिद्धम् ।
स्री (श्री) च[च्चिका स्मरणमात्र[कृत] प्रसादात्. [संप्राप्यति (ते) कलि[युगेपि] धराधिपत्यं (यम्) । [आ]राधिता विधियुता कुसुमैवि (वि)चित्रः
स्रा (सा) खेचर त्वरस सिद्धिपदस्य लब्ध (ब्धिः) ।। [१] १०-१४ इति महाराजाधिराज परमेस्व (श्व) र स्री (श्री) नरवर्मदेवस्य निर्वाणनारायणस्य परनारी
सहोदरस्य १५-१९ चच्चि (च्चि) काख्या समारव्याता देवी सर्वजनप्रिया ।
यस्याः प्रसादमात्रेण लेभे संसारयोग्यतां (ताम्) । [२] २०-२६ कृतिरियं ठक्कुर सूपटसुत ठकुर । णीजास (जस्य) सु (सु) त ठक्कुर स्री (श्री) माधवस्य ।
परनारी सहोदरस्य । द्विजस्य । माथुर वंशजस्य ।। मंगलं महास्री (श्रीः) [1]
(अनुवाद) १. सिद्धि ।
श्री चाच्चिका के स्मरण करने के प्रसाद से कलियुग में भी पृथ्वी का आधिपत्य प्राप्त होता है। विचित्र कुसुमों द्वारा विधिपूर्वक आराधना करने पर आकाश विचरण की सिद्धि
प्राप्त होती है ॥१॥ १०-१४ महाराजाधिराज परमेश्वर श्री नरवर्मदेव-निर्वाणनारायण (जो) पर-स्त्री के लिए भाई (है) ।
सभी जनों की प्रिया चच्चिका नामक सुविख्यात देवी जिसके प्रसादमात्र से संसार
योग्यता (अर्थात् संसार में कार्य करने की क्षमता) प्राप्त होती है ।।२॥ १९-२६ यह कृति ठकुर सुपट के सुत (पौत्र) ठकुर णीजा के सुत ठक्कुर श्री माधव की है, (जो) पर-स्त्री के लिए भाई है, ब्राह्मण है, माथुर वंश का है। मंगल महालक्ष्मी ।
(४१) उज्जैन का निर्वाणनारायण-नरवर्मन का महाकाल मंदिर प्रस्तर अभिलेख
(तिथि रहित) प्रस्तुत अभिलेख एक काले प्रस्तरखण्ड पर उत्कीर्ण है जो उज्जैन के महाकाल मंदिर के पास खण्डहरों में प्राप्त हुआ था। इसका उल्लेख ए. रि. आ. डि. ग., संवत् १९९२, पृष्ठ १५; नागरी प्रचारिणी पत्रिका, संवत् १९९५, भाग १९, पृष्ठ ८७-८९ पर है। यह पुरातत्व संग्रहालय, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में सुरक्षित है। ... प्रस्तरखण्ड किसी बड़े अभिलेख का अंशमात्र है । यह भग्न होकर त्रिकोणीय आकार का रह गया है । इसमें १४ पंक्तियां शेष हैं जो सभी अधूरी हैं । प्रथम पंक्ति के अक्षर कुछ क्षतिग्रस्त हैं। दूसरी पंक्ति में २५ अक्षर हैं। आगे की पंक्तियां क्रमशः छोटी होती चली गई। अंतिम पंक्ति में केवल २ अक्षर शेष हैं। मूल अभिलेख का आकार ज्ञात करने का कोई साधन नहीं है।
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