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________________ १७८ परमार अभिलेख प्रतीत नहीं होता। पंक्ति १२ में महीपति का उल्लेख है जो कायस्थ वंशीय था। वह संभवत: पंक्ति ९ में उल्लिखित रुद्रादित्य का पुत्र था, जिसको कायस्थ कुंजर कहा गया है। पंक्ति १३ से आगे में दो मंदिरों के निर्माण का उल्लेख है। किसी भौगोलिक स्थान का उल्लेख नहीं है। अभिलेख के आकार को देखते हुए इसमें प्राप्त तथ्य न्यून हैं। इसके आधार पर ज्ञात होता है कि नरवर्मन् के शासनकाल में राजस्थान में उदयपुर का भूभाग परमार साम्राज्य के अन्तर्गत था। ... अभिलेख का मूलपाठ नहीं दिया जा रहा है। (४०) भिलसा का नरवर्मन् का विजामंदिर प्रस्तर-स्तम्भ अभिलेख (तिथि रहित) प्रस्तुत अभिलेख विदिशा में विजमंदिर में एक प्रस्तर स्तम्भ पर उत्कीर्ण है । इसके उल्लेख प्रो.रि., आ.स.इं, वे. स., १९१३-१४, पृष्ठ ५९ तथा ए.रि.आ.डि.ग, संवत १९७४, १९१६-१७ में किये गये। अभिलेख २६ पंक्तियों का है। इसका आकार ६३४ १६ सें. मी. है। अक्षरों की बनावट १२वीं शती की नागरी लिपि है । अक्षरों की लम्बाई २ से २.५ सें. मी. है। प्रत्येक पंक्ति में ७-८ अक्षर उत्कीर्ण हैं । अभिलेख की स्थिति सामान्य है। प्रथम ५ पंक्तियों के कुछ अक्षर क्षतिग्रस्त हो गये हैं। भाषा संस्कृत है एवं गद्यपद्यमय है । पंक्ति १-९ में पहला श्लोक, पंक्ति १४-१९ में दूसरा श्लोक है । शेष गद्यमय है। ___व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, श के स्थान पर स, म् के स्थान पर अनुस्वार, र के बाद का व्यञ्जन दोहरा बना है। ए ऐ के लिए पृष्टमात्रा का प्रयोग है। इस में तिथि का अभाव है । परन्तु इसकी लिपि आदि एवं नरेश नरवर्मन् के उल्लेख के आधार पर उसके शासनकाल में ही इसको रखा जा सकता है। इसका प्रमुख ध्येय नरेश की आराध्य देवी चच्चिका के प्रति भक्ति प्रदर्शित करना है। __ अभिलेख का प्रारम्भ सिद्धं से होता है जो एक चिन्ह द्वारा अंकित है। आगे प्रथम ९पंक्तियों में एक श्लोक में देवी चच्चिका की प्रशंसा है। इसमें कहा गया है कि देवी के स्मरण मात्र के प्रसाद से पृथ्वी का आधिपत्य प्राप्त होता है । सम्यक रूप से आराधना करने पर देवी आकाश-विचरण की शक्ति प्रदान करती है । अगली ५पंक्तियों में नरेश नरवर्मदेव को प्रत्येक स्त्री के लिये भाई समान निरूपित किया गया है। यहां नरेश के लिये राजकीय उपाधियां महाराजाधिराज परमेश्वर दी हुईं हैं। उसका अन्य नाम निर्वाणनारायण था। आगे पंक्ति १४-१९ में दूसरा श्लोक है। इसमें लिखा है कि चच्चिका सभी जनों की प्रिय देवी हैं जिसके प्रसाद से संसार-योग्यता प्राप्त होती है । पंक्ति २० से आगे लेखक ठक्कुर सुपट का पुत्र (पौत्र), ठक्कुर णीजा का पुत्र ठक्कुर श्री माधव का नाम है । वह माथुर वंशीय ब्राह्मण था। माथुर वंशीय संभवतः मथुरा से आये ब्राह्मण लेखक रहे होंगे । ब्राह्मणों में इस वंश का सामान्यतः उल्लेख नहीं मिलता। . अभिलेख का स्तम्भ चच्चिका देवी के मंदिर में लगा रहा होगा। संभावना यह है कि नरवर्मन् ने स्तम्भ के आस-पास देवी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने हेतु मंदिर का निर्माण करवाया होगा। चच्चिका देवी का सप्तशती के कवच में 'उत्तरोष्ठे तु चच्चिका' का वर्णन प्राप्त होता है । बस्तर जिले में पुजारीपाली स्थान से प्राप्त गोपालदेव के प्रस्तर अभिलेख में भी चच्चिकादेवी का उल्लेख है (का. इं. ई., भाग ४, पृष्ठ ५९१, श्लोक १६ व पादटिप्पणी)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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