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देवास अभिलेख
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देवास का नरवर्मन का ताम्रपत्र अभिलेख (अपूर्ण)
(संवत् ११५२= १०९५ ई.) प्रस्तुत अभिलेख एक ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण है जो देवास नगर में १९६८ ई. में विचित्र परिस्थितियों में प्राप्त हुआ। इन्दौर के एक चिकित्सक डा. एस. एन. नागू अपने एक रोगी को देखने देवास गये । वहां एक ठठेरे द्वारा प्रस्तुत ताम्रपत्र से वर्तन में लगाने हेतु दो गोल टुकड़े काटने का समाचार मिला । वे तुरन्त गये एवं टुकड़े प्राप्त किये। शेष भाग उज्जैन के एक कबाड़ी के हाथ बेच दिया गया था, अतः तुरन्त उससे सम्पर्क साध कर वे भी प्राप्त कर लिए गये। सभी खण्डों को जमा कर सावधानी से जोड़ा गया। इस प्रकार प्रस्तुत ताम्रपत्र पूर्ण कर लिया गया। यह वर्तमान में विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग में सुरक्षित है।
ताम्रपत्र सम्पूर्ण अभिलेख का केवल प्रथम भाग है। अनुमानतः सारा अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण था। अभिलेख का आकार ३१४२४३ से. मी. है। ताम्रपत्र में अभिलेख केवल एक ओर उत्कीर्ण है। इसके नीचे दो छेद बने हैं जिनसे अंतिम वाक्य प्रभावित हो गया है। इसके किनारे मोटे हैं व लेख वाले भाग की ओर मुड़े हैं। इसका वजन २.०३५ किलो ग्राम है।
ताम्रपत्र में १८ पंक्तियां खुदी हैं। लेख सुन्दर नहीं है फिर भी पढ़ने में कठिनाई नहीं है। कुछ अक्षरों की बनावट बेढंगी है। बनावट में ये ११वीं-१२वीं सदी की नागरी लिपि में है । अक्षरों की लम्बाई प्रायः १ सें. मी. है। भाषा संस्कृत है व गद्य-पद्यमय है। प्राप्त भाग में ४ श्लोक हैं, शेष गद्यमय हैं।
व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, श के स्थान पर स, ए औ के लिए पृष्ठमात्रायें, र के बाद का व्यञ्जन दोहरा, वाक्य के अन्त में अनुस्वार, एवं आवश्यक स्थानों पर संधि का अभाव आदि कुछ विचारणीय तथ्य हैं। ये सभी काल व स्थानीय प्रभावों को प्रदर्शित करते हैं। कुछ त्रुटियां उत्कीर्णकर्ता की गलती से बन गई हैं। इनको पाठ में सुधार दिया गया है।
अभिलेख की तिथि संवत् ग्यारह सौ बावन की भाद्रपद सुदि एकादशी है। यह मंगलवार, १४ अगस्त १०९५ ई. के बराबर बैठती है। इसमें दिन का उल्लेख न होने से इसका सत्यापन संभव नहीं है।
__ इसका प्रमुख ध्येय नरेश नरवर्मन द्वारा अपने पिता उदयादित्य देव की सांवत्सरिका (वार्षिकी) पर भूदान का उल्लेख करना है। दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मण दक्षिणापथ में आदिवलविदा स्थान से देशान्तरगमन करके आया भारद्वाज गोत्री, भारद्वाज, अंगिरस, वाहरुपत्य इन तीनों प्रवरों वाले, वेद की आश्वलायन शाखा के अध्यायी, ब्राह्मण धनपाल का पौत्र, महिरस्वामी का पुत्र विश्वरूप था। यह धनपाल भोजदेव कालीन सुविख्यात धनपाल से भिन्न था, क्योंकि वह मध्यदेश का वासी था एवं काश्यप गोत्री था (जैन साहित्य और इतिहास-नाथुराम प्रेमी, पृष्ठ ४०९)।
अभिलेख की पंक्ति ३-६ में दानकर्ता नरेश की वंशावली है जिसके अनुसार सर्वश्री सिंधुराजदेव, भोजदेव, उदयादित्यदेव और नरवर्मनदेव के नामोल्लेख हैं। इनके नामों के साथ पूर्ण राजकीय उपाधियां परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर लगी हुई हैं।
पंक्ति ६-८ में भूदान के गांव का उल्लेख है जो इंगुणीपद्र-सार्द्धसप्तशत भोग के अन्तर्गत भगवत्पुर प्रतिजागरक में मालापुरम ग्राम था। यहां लिखा है कि इससे पूर्व श्री धर्माधिकरण
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