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परमार अभिलेख
नष्ट नहीं होते, क्रुद्ध मृत्यु से भी त्रस्त नहीं होते, और ब्रह्मदेव के द्वारा भी (पुनर्जन्म
हेतु) नहीं चाहे जाते हैं, शंभु के ऐसे चरणकमल द्वय तुम्हारे अन्तकरण को अलंकृत करें। ८५. यह उदयादित्य की अक्षर रचित वर्णनाग-कृपाणिका कवियों व नरेशों के वक्षस्थलों पर
भूषणरूप से आरोपित है। ८६. महेश व स्वामी उदयादित्य व नरर्मन नृपतियों के नामों की स्मृति हेतु एक यह सिद्ध
असिपुत्रिका (खङ्ग) निर्मित है। [अथवा शिवोपासक नरेश उदयादित्य व नरवर्मन के
नामांकित यह खड्ग चतुर्वर्ण व सिद्धि (विद्या) की रक्षा हेतु स्थित (तत्पर) है।] ८७. शब्द रूपी मुक्तामणि पंक्तियों से निर्मित उदयादित्य की नामांकित वर्णनाग कृपाणिका
सुकविबंधु द्वारा रची गई।
(३१) धार का नरवर्मन कालीन भोजशाला नागबंध प्रस्तरस्तम्भ अभिलेख
(तिथि रहित)
प्रस्तुत वर्णनाग कृपाणिका बंध अभिलेख धार में भोजशाला के भीतर सामने मुख्य गुम्बद के आधार स्तम्भों में से केन्द्रीय स्तम्भों पर उत्कीर्ण है। इसका प्रथम उल्लेख १९०४ में प्रो. रि. आ. स. वे. ई. में किया गया । इसके बाद भी समय समय पर इसके उल्लेख हुए । इसका विवरण एपि. ई., भाग ३१, पष्ठ २९ पर है।
अभिलेख दो अंशों में है। प्रथम अंश दाहिने स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। इसमें अनुष्टुभ छन्द में दो श्लोक हैं। नीचे संस्कृत धातु प्रत्ययमाला है। यह एक नागयुगल के घुमावदार लम्बे शरीरों द्वारा निर्मित चौकोर व गोलाकार मिश्रित त्रिकोणीय तालिका के रूप में है। श्लोकों का क्षेत्र २०४६.७ सें. मी. है। उसके नीचे प्राय: १७ सें. मी. स्थान रिक्त है। फिर नागबंध बना हुआ है जिसका क्षेत्र ६०४४४ सें. मी. है।
द्वितीय अंश बाईं ओर के केन्द्रीय स्तम्भ पर खुदा है। इसमें संस्कृत वर्णमाला दी हुई है। यह एक नाग के घुमावदार लम्बे शरीर द्वारा निर्मित चौकोर व लम्बी तालिका के रूप में है। यह उज्जैन में महाकाल मंदिर में प्राप्त वर्णनाग कृपाणिका बंध के समान है। इसका क्षेत्र ७०-३२ सें. मी. है। .
. दोनों केन्द्रीय स्तम्भ सुन्दर कलात्मक ढंग से गढ़े हुए हैं। अभिलेख प्रायः अच्छी हालत में है यद्यपि काल का प्रभाव साफ दृष्टिगोचर है। भोजशाला के फर्श पर सुन्दर काले चिकने पत्थरों की शिलायें लगी हैं। इन पर उत्कीर्ण लेख छेनी द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिये गये हैं। यह कार्य धर्मान्ध अज्ञानता का परिचायक है। परन्तु यह सौभाग्य ही है कि नागबंध स्तम्भों पर उत्कीर्ण होने के कारण सुरक्षित हैं। दोनों अंश सरल प्रकृति एवं मायाविहीन हैं यद्यपि दूर से देखने में रहस्यमय लगते हैं।
__ नागबंधों के अक्षरों की बनावट ११ वीं-१२ वीं शती की देवनागरी लिपि है। अक्षर सुन्दर ढंग से प्राय: ६ सें. मी. लम्बे खुदे हैं। अभिलेख की भाषा संस्कृत है जिसमें उज्जैन नागबंध के श्लोक ८५-८६ की प्रतिलिपि हैं। दूसरे श्लोक में असिपुत्रिका के स्थान पर असिपुथिका लिखा हैं। नागबंधों में वर्णमाला वाला भाग उज्जैन में प्राप्त बंध के समान है, परन्तु प्रत्ययमाला अंश नवीन है।
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