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________________ १३४ परमार अभिलेख पंक्ति क्र. ४ के अनुसार शिव के एक मंदिर का निर्माण करवाया था। यहां 'इदं' शब्द से यह अनुमान होता है कि प्रस्तुत अभिलेख इसी मंदिर में लगा हुआ था । परन्तु यह निश्चित करना सरल नहीं है कि यह मंदिर कहां पर बनवाया गया था । आगे पंक्ति क्र. ५ में उसी के द्वारा एक बावडी के बनवाने का उल्लेख है सो चिरिहिल्लतल में चाडाघौषा कपिका और व्रवासक के बीच में स्थित थी। फिर पंक्ति क्र. ७-९ में उसी के द्वारा लोलिगस्वामी देव, जिसको दानकर्ता की माता प्रणाम करती है, के लिये श्री सेंधवदेव पर्व पर चार पल्ली दीपते मोदक प्रतिवर्ष खरीद कर देने का उल्लेख है। इससे पूर्व पंक्ति क्र.६ में प्रस्तुत अभिलेख के उत्कीर्णकर्ता का उल्लेख है जो पंडित हर्षुक था। अंतिम पंक्ति क्र. १० में महालक्ष्मी के मंगलकारी होने की कामना है। मंगल के प्रारम्भ में 'छ' अक्षर और बाद में ९ अंक के समान एक चिन्ह है जिनका अभिप्राय अनिश्चित है। अभिलेख का महत्व इस तथ्य में है कि शिवमंदिर का निर्माण व अभिलेख की स्थापना उस समय हुई जब उदयादित्य का राज्य शासन चालू था। परन्तु यहां उदयादित्य के नाम के साथ न तो राजकीय उपाधियां हैं एवं न ही कोई सम्मानसूचक राजकीय चिन्ह है। इसके अतिरिक्त उसके वंश अथवा वंशावली का भी कोई उल्लेख नहीं किया गया है। यहाँ एक सामान्य नागरिक द्वारा मंदिर बनवाने का उल्लेख करने हेतु मंदिर में लगवाया गया पट्ट ही है। अतः शासनकर्ता नरेश का इसमें उपरोक्त विवरण न होना कोई अचम्भे की बात नहीं है। वास्तव में यह विश्वास करने को अनेक कारण हैं कि वह उदयादित्य ही था जो परमार राजवंशीय राजधानी धारा नगरी से शासन कर रहा था। प्रस्तुत अभिलेख के आसपास के वर्षों में उदयादित्य के अनेक अभिलेख प्राप्त होते हैं। उदाहरणर्थ उसका संवत् ११३७ का उदयपुर प्रस्तर अभिलेख (क्र. २४) इससे केवल ६ वर्ष पूर्व ही निस्सृत किया गया था। उसका शेरगढ़ अभिलेख (क्र. २९), जिसकी तिथि आंशिक रूप में टूट गई है, प्रायः लेखनकला की समानता के आधार पर उसी समय के आसपास ही निस्सृत किया गया प्रतीत होता है। प्रस्तुत प्रस्तर खण्ड, जो झालरापाटन में है, कहीं बहुत दूर से वहां पर नहीं लाया गया था। झालरापाटन वर्तमान में शेरगढ़ से दक्षिण पश्चिम की ओर केवल २५ मील की दूरी पर है। जबकि शेरगढ़ अभिलेख (क्र. २९) में उल्लिखित चच्छरोणी (आधनिक चचोनी) से उत्तर पश्चिम की ओर प्रायः २० मील की दूरी पर और विदिशा जिले में उदयपुर से उत्तर-पश्चिम की ओर प्रायः १५० मील है। अतः स्वीकार करना चाहिए कि उदयादित्य का साम्राज्य उत्तर में कोटा व झालरापाटन एवं उत्तर-पूर्व में विदिशा जिलों तक विस्तृत था। अभिलेख में वर्णित भौगोलिक स्थानों में चिरिहिल्ल (पंक्ति ४) वर्तमान में झालरापाटन से दक्षिण पूर्व की ओर ५० मील की दूरी पर चिरेलिया नाम से विद्यमान है। घोषकपिका संभवत: घटोला ग्राम ही है जो झालरापाटन से दक्षिण-पूर्व की ओर २५ मील और चिरेलिया से दक्षिण-पश्चिम की ओर ८ मील की दूरी पर स्थित है। वरुवासक के बारे में निश्चित रूप से कहना कठिन है परन्तु यह संभवतः वसूली ग्राम हो सकता है जो घटोला से उत्तर की ओर प्रायः ६ मील की दूरी पर स्थित है। ये सभी स्थल झालावाड़ जिले के अन्तर्गत अकलेरा तहसील में हैं और शेरगढ़, जहां से उदयादित्य का अन्य अभिलेख (क्र. २७) प्राप्त हुआ है, से प्राय: २७-२८ मील दक्षिण की ओर स्थित हैं। अत: यह संभव है कि प्रस्तुत अभिलेख का प्रस्तर खण्ड उपरोक्त किसी स्थान से प्राप्त हुआ हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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