________________
झालरापाटन अभिलेख
१३३
७. नरवर्मदेवेन उदकं प्रदत्तं (त्तम् )[]संवत् ८. ११४० [1]
(अनुवाद) १. स्वस्ति । श्रीयुक्त उज्जयिनी के (समीप) २. (स्थित) धवलीग्राम में ठहरे परम३. भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री ४. उदयादित्य देव । उसके पुत्र लक्ष्मदेव की (के लिये) अक्षय ५. दीप के हेतु राडघटिका ग्राम में खेती (योग्य) भूमि ६. १२ हल (नाप की) दी गई । दूसरे (पुत्र) ७. नरवर्मदेव के द्वारा जल (हाथ में लेकर) दी गई। संवत् ८. ११४० ।।
(२८) झालरापाटन का उदयादित्य कालीन प्रस्तर अभिलेख
(संवत ११४३=१०८६ ई.)
प्रस्तुत अभिलेख एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है जो प्रायः १९०० ई. में राजस्थान में झालरापाटन में सर्वसुखिया कोठी में मिला था। इसका प्रथम उल्लेख डी. आर. भण्डारकर ने प्रो. रि. आ. स. इं. वे. स., १९०५-६, पृष्ठ ५६, क्र. २०९४ में किया। वि. एन. शास्त्री ने इसका विवरण ज. ए. सो. बं., न्य सीरीज, १९१४, भाग १०, पष्ठ २४१ व आगे पर छापा। ए. रि. इं. ए., १९५२-५३, क्र. ४१९ पर इसका उल्लेख किया गया। वर्तमान में यह प्रस्तर खण्ड झालावाड़ संग्रहालय में सुरक्षित है।
अभिलेख १० पंक्ति का है जिसका आकार २० x १५ से. मी. है। पंक्ति ३, ४, ९ में अंतिम एक-एक अक्षर क्षतिग्रस्त हो गये हैं, शेष सारा ठीक स्थिति में है। पहली ७ पंक्तियों के अक्षर प्राय: १३ से. मी. हैं, शेष के अक्षर आधे लम्बे हैं । प्रथम सात पंक्तियों में प्रत्येक में प्रायः २० अक्षर हैं, पंक्ति क्र. ८-९ में ३० अक्षर एवं अंतिम पंक्ति में १० अक्षर हैं।
अक्षरों की बनावट ११वीं सदी की नागरी है। भाषा संस्कृत है। सारा अभिलेख गद्य में है। व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से श के स्थान पर स का प्रयोग किया गया है। र के बाद का व्यञ्जन दोहरा कर दिया है। वाक्य के अंत में म् के स्थान पर अनुस्वार है। कुछ अन्य त्रुटियां भी हैं जो पाठ में सुधार दी गई हैं।
अभिलेख की तिथि शुरु में संवत् ११४३ वैशाख सुदि १० है। यह रविवार, २६ अप्रेल १०८६ ई. के बराबर बैठती है। प्रमुख ध्येय उदयादित्य के शासनकाल में पटेल जन्नक द्वारा
मंदिर व बावड़ी बनवाने का उल्लेख करना और श्री लोलिगस्वामी देव के लिए कुछ दानों का उल्लेख करना है।
__पंक्ति क्र. २ में श्रीमान् उदयादित्य देव के कल्याणकारी विजययुक्त राज्य का उल्लेख है। पंक्ति क्र. ३ में तैलिक वंश में उत्पन्न पटेल चाहिल के पुत्र पटेल जन्नक का नाम है जिसने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org