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________________ १३२ परमार अभिलेख भी अभिलेख के परमार राजवंशीय होने की ओर इंगित करती है। फिर उत्तरकालीन परमार राजवंशावली से ज्ञात होता है कि उदयादित्य के लक्ष्मदेव और नरवर्मन नामक पुत्र थे (अभिलेख क्र. ३६)। अतः प्रस्तुत अभिलेख में यद्यपि उदयादित्य के वंश अथवा वंशावली का कोई उल्लेख नहीं है, फिर भी उपरोक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इसको परमार राजवंशीय नरेश मानने में कोई कठिनाई नहीं है। अभिलेख के प्रमुख ध्येय का विवरण विशेष महत्व लिए हुए है। इसके अनुसार 'अक्षय दीपिकायें अर्थात् सदा जलते रहने वाले दीपक के हेतु दान दिया गया था। यह वास्तव में 'अक्षयलोक दीपिकायें' का ही छोटा रूप है जिसका भाव है 'ऐसा दीपक जो स्वर्ग में सदा शांति प्रदान करे'। इसको इस संदर्भ में लेने पर अभिलेख की ऐतिहासिकता उजागर होती है। अभिलेख के निस्सृत करने के कुछ समय पूर्व ही लक्ष्मदेव की मृत्यु हुई थी। नरवर्मन को अपने बड़े भाई से अत्याधिक अनुराग था जैसा हमें उसके नागपुर अभिलेख (क्र. ३६) से भी ज्ञात होता है। वह प्रशस्ति स्वयं नरवर्मन द्वारा रची गई थी और उसमें उसके भाई लक्ष्मदेव की प्रशंसा में सर्वाधिक १९ श्लोक (क्र. ३५-५४) लिखे मिलते हैं। लक्ष्मदेव की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई थी सो प्रस्तुत अभिलेख से ज्ञात नहीं होता। न ही उसकी मृत्यु की निश्चित तिथि ज्ञात होती है। परन्तु यह विचारणीय है कि नागपुर प्रशस्ति (क्र. ३६) में जहां वैरिसिंह से लेकर लक्ष्मदेव तक परमार राजवंशावली दी हुई है। प्रत्येक नरेश के नाम के साथ क्षितिपति, भूपति, नृप आदि उपाधि लगी हुई है। परन्तु लक्ष्मदेव के नाम के साथ इस प्रकार की कोई उपाधि नहीं है, यद्यपि इसको 'सम्यक प्रजापालन व्यापार प्रवणः अर्थात् सम्यक रूप से प्रजा पालन में दक्ष' लिखा है (श्लोक क्र. ३५)। इससे अनुमान होता है कि वह कभी भी धारा के राजकीय सिंहासन पर आरूढ़ नहीं हुआ। इस आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि संभवतः वह परमार साम्राज्य के पूर्वी भाग में अपने पिता उदयादित्य के शासनकाल में एक प्रांतपति के रूप में शासन सूत्र संभाले हुए था, क्योंकि नागपुर अभिलेख में उसके द्वारा इसी भूभाग में दान देने का विवरण भी है (श्लोक क्र. ५५)। अभिलेख में वर्णित केवल दो ही भौगोलिक स्थानों का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें प्रथम धवली है जहां पर उस समय उदयादित्य स्वयं ठहरा हआ था। इस स्थान का ता वर्तमान ढाबला ग्राम से किया जा सकता है जो उज्जैन से प्रायः २० कि. मी. उत्तर पूर्व की ओर स्थित है। दूसरा स्थल राढ़घटिका अथवा घटिका है जहां पर भूमि का दान किया गया था। यह स्थान ढाबला से ३ कि. मी. उत्तर-पश्चिम की ओर घटिया ग्राम ही है। (मूलपाठ) १. स्वस्ति [1] श्रीमदुज्जयन्याः ---- २. -- --१ धवलीग्रामावस्थित परम३. भाट्टा]रक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री उद४. यादित (त्य) देव[:] [1] तदी[य] पुत्र [ल]क्षम (क्ष्म) देवस्य अक्षय ५. दीपिकार्थे राडघटी (टि) का-ग्राम (मे) क्षेत्रभूमिः ६. हलांक १२ प्रदत्ता इति द्वितीय ----- १. संभवतः 'समीपस्थ'। २. संभवतः पुत्रेन' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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