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कामेद अभिलेख
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(२७) कामेद से प्राप्त उदयादित्य कालीन प्रस्तरस्तम्भ अभिलेख
(संवत् ११४० =१०८३ ईस्वी)
प्रस्तुत अभिलेख एक छोटे प्रस्तर स्तम्भ पर उत्कीर्ण है, जो उज्जैन से उत्तर पूर्व की ओर उज्जैन-आगर मुख्य सड़क पर कामेद ग्राम में एक खेत में हल चलाते समय प्राप्त हुआ था। खेत के स्वामी ने पास ही एक पक्का चबूतरा बनवा कर इस पर इस स्तम्भ को स्थापित कर दिया और इस पर सिन्दूर पोत दिया । इस कारण बाद में इसको साफ कर जब छाप ली गई तो भी कुछ अक्षर प्रयत्न करने पर भी साफ नहीं आ पाये । परन्तु जो प्राप्त है सो अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
स्तम्भ की ऊंचाई ९२.५ सेंटीमीटर है। इसमें निचले भाग पर अभिलेख खुदा हुआ है। अभिलेख के ऊपर वाले भाग में हाथ जोड़े गरुड़ की आकृति खुदी हुई है। यह परमार राजवंश का राजचिन्ह है।
अभिलेख ८ पंक्तियों का है । इसका क्षेत्र ४८४ ३२.५ सेंटीमीटर है । प्रत्येक पंक्ति में प्रायः १६ से १९ अक्षर हैं। परन्तु अंतिम पंक्ति केवल ७ सें. मी. लम्बी है। इसमें तिथि के अंक खुदे हुए हैं। खोदे हुए अक्षरों का आकार एक समान नहीं है। प्रथम दो पंक्तियों के अक्षरों की लम्बाई प्रायः .५ सें. मी. है। शेष पंक्तियों के अक्षरों की लम्बाई .३ सें. मी. है। अक्षरों की बनावट भद्दी है और वे लापरवाही से उत्कीर्ण किये गये हैं । अक्षरों की बनावट ग्यारहवीं शताब्दी की नागरी है। भाषा संस्कृत है व सारा अभिलेख गद्यमय है। शब्द विन्यास की दृष्टि से इसमें कोई विशेषता नहीं है।
अभिलेख की तिथि संवत् ११४० है। इसमें अन्य विवरण नहीं है । यह सन् १०८३ ईस्वी के बराबर है। इसका प्रमुख ध्येय उदयादित्य के शासन काल में उसके दूसरे पुत्र नरवर्मदेव द्वारा राढ़घटिका ग्राम में १२ हल भूमि दान करने का उल्लेख करना है, जिसकी आय से लक्ष्मदेव के लिये अक्षय-दीपिका जलाने का प्रबंध किया गया था।
पंक्ति क्र. १-४ में उज्जयिनी के समीप धवली ग्राम में ठहरे श्री उदयादित्य देव का उल्लेख है जिसके नाम के साथ पूर्णतः राजकीय उपाधियां परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर लगी हुई हैं। पंक्ति ४-५ में उसके पुत्र लक्ष्मदेव के लिये अक्षयदीप जलाने का उल्लेख है । आगे दूसरे पुत्र नरवर्मदेव द्वारा रायटिका ग्राम में १२ हल खेती योग्य भूमि जल हाथ में लेकर प्रदान करने का उल्लेख है। यह दान किसको दिया गया सो उल्लेख नहीं है। संभव है कि भूमि ग्राम पंचायत को ही सौंप दी गई हो जिसको अक्षयदीप सदा जलाये रखने का कार्य सौंपा होगा।
प्रस्तुत अभिलेख ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यह अभिलेख उदयादित्य के इससे पूर्व के अभिलेख के तीन वर्ष के भीतर ही निस्सृत किया गया था। इससे पूर्वकालीन अभिलेख संवत् ११३७ तदनुसार १०८० ई. (क्र. २४) का है। इसके अतिरिक्त इसका संबंध उज्जैन के आसपास के क्षेत्र से है जो प्रस्तुत अभिलेख के समय परमार साम्राज्य के अन्तर्गत था। अतएव यह निर्विरोध रूप से कहा जा सकता है कि इसमें उल्लिखित उदयादित्य वास्तव में परमार राजवंशीय प्रख्यात नरेश ही है। इसकी उपरोक्त राजकीय उपाधियां, जो इसके शेरगढ़ अभिलेख (क्र. २९) में भी प्राप्त होती हैं व जिसमें इसको परमार राजवंश से संबद्ध किया हुआ है, उक्त तथ्य की ही पुष्टि करती हैं। पुनः अभिलेख के ऊपर प्रारम्भ में हाथ जोड़े गरुड़ की आकृति
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