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परमार अभिलेख
२४ में लुप्त है, अभिलेख क्रमांक 'अ' में टूट गया है, परन्तु अभिलेक क्रमांक ब में साफ पड़ने में आता है।
तीनों अभिलेखों के एक साथ अध्ययन करने पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नरेश उदयादित्य ने अपने नाम पर उदयपुर नगर की स्थापना की, वहां एक झील और सुविख्यात शिव मंदिर के निर्माण करवाये।
मूलपाठ (क्रमांक अ) स्वयंभूरपरः श्रीमानुदयादित्य भूपतिः[1] पुरेस्व (श्व) रे समुद्रादीनुदयोपपदा-धात् ॥१॥] किमन्यव (ब) हुभिर्वीरैः किमन्यैर्व (ब) हुभिःस्त
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एकच्छे दादिकं वेदं शंस सर्वा
र्थ सिद्धिदः3॥२॥] . उत्कीर्णाः श्लोकाः ६. सूत्रधार श्री मधुसूदन भ्रातृ श्री ..... ७. देवेन । मंगलम्महाश्रीः ।।
(क्रमांक ब) १. एते श्लोकाः समुत्कीर्णाः [स्थि]रदेवेन -~-६ (1) २. पंडित श्री महीपाल कृताः-~~-~- (॥)
अनुवाद (क्रमांक अ) श्रीमान उदयादित्य नरेश मानो दूसरा ब्रह्मदेव ही है (जिसने) स्वयं के नगर में झील आदि उदयपद से निर्मित किया (?) ॥१॥ ____ अन्य बहुत वीरों से क्या प्रयोजन, अन्य बहुत सी स्तुतियां करने से क्या प्रयोजन।
सर्वार्थ सिद्धि को देने वाले एकछत्र वेद का भी वर्णन किया गया है। ।।२।। ५. श्लोक उत्कीर्ण किये गये ६. सूत्रधार श्री मधुसूदन के भाई श्री. . . . . . ७. देव के द्वारा । महालक्ष्मी मंगलकारी हो ।
(क्रमांक ब) १. ये श्लोक स्थिर देव . . . . के द्वारा उत्कीर्ण किये गये। २. पंडित श्री महीपाल द्वारा रचे गये. . . . . .। १. दो अक्षरों का पाठ अनिश्चित है। २. संभवतः 'एकच्छता'। ३. संभवतः 'सिद्धिदम्'। ४. नीचे क्रमांक ब, पंक्ति १ के आधार पर यहां दो अक्षर संभवतः 'स्थिर' रहे होंगे। ५. यहां बहुवचन के प्रयोग से अभिलेख क्र. २४ व प्रस्तुत दोनों भागों के सभी श्लोकों से ... तात्पर्य रहा होगा, ऐसी संभावना है। ६. संभवतः 'धीमता'।
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