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________________ उदयपुर अभिलेख १२९ (२६) उदयपुर का उदयादित्य कालीन मंदिर प्रस्तर स्तम्भ अभिलेख (तिथि रहित) प्रस्तुत अभिलेख पूर्ववणित अभिलेख क्र. २४ के पास पूर्वी द्वार की ओर जाने वाली सीढ़ियों के ऊपर बाईं ओर स्थित एक प्रस्तर स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। इसके नीचे लगे एक प्रस्तर खण्ड पर दो पंक्तियों का एक श्लोक भी उत्कीर्ण है, जो प्रस्तुत अभिलेख का आगे का भाग प्रतीत होता है। सुविधा की दृष्टि से मूल अभिलेख को 'अ' एवं इसको 'ब' क्रम दिया गया है। इनका उल्लेख ए. रि. आ. डि. ग., संवत् १९७४, क्र. १११ पर किया गया । परन्तु यह रिपोर्ट अप्राप्य है। हरिहर द्विवेदी कृत ग्रन्थ ग्वालियर राज्य के अभिलेख क्र. ६४९ पर इसका सामान्य उल्लेख है। मूल अभिलेख 'अ' ७ पंक्तियों का एवं 'ब' दो पंक्तियों का है। दोनों की स्थिति अच्छी है, परन्तु पंक्ति ६ में दो अक्षर लुप्त हो गये हैं जो संदर्भ में जोड़े जा सकते हैं। दूसरे अभिलेख 'ब' की दोनों पंक्तियों के अंतिम अक्षर भग्न हो गये हैं। अभिलेख 'अ' का आकार ३२३४ २४३ सें. मी. है। अक्षर प्रायः ४ सें. मी. लम्बे हैं। भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है। अक्षरों की बनावट ११वीं सदी की नागरी है। व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व एवं श के स्थान पर स का प्रयोग किया गया है। र के बाद का व्यञ्जन दोहरा कर दिया गया है। इन सभी को पाठ में सुधार दिया गया है। अभिलेख में तिथि का अभाव है, परन्तु अक्षरों की बनावट एवं अभिलेख क्र. २४ के सानिध्य से इसकी तिथि उसी के आस पास निर्धारित की जा सकती है। इसका प्रमुख ध्येय नरेश उदयादित्य के नाम पर उदयपुर नगर की स्थापना एवं पास में एक झील के बनवाने का उल्लेख करना है। ___इसके प्रारम्भ में अनुष्टुभ छन्द में दो श्लोक हैं। प्रथम श्लोक में भूपति उदयादित्य द्वारा उदयपुर नगर को अपने नाम पर बसाने और वहां पर एक झील के बनवाने का वर्णन है। दूसरे श्लोक में इसी नरेश की प्रशंसा है। यहां पर नरेश के वंश का कोई उल्लेख नहीं किया गया है, परन्तु इसमें कोई शंका नहीं है कि वह परमार राजवंशीय इसी नाम का विख्यात नरेश है। इससे आगे श्लोकों के उत्कीर्णकर्ता का नाम है जो आंशिक रूप में टूट गया है। परन्तु अभिलेख 'ब' के आधार पर इसका नाम स्थिरदेव निश्चित किया जा सकता है। वह सूत्रधार मधुसूदन का भाई था। अभिलेख का अन्त 'मंगलं महाश्रीः' से होता है। ऊपर कहा जा चुका है कि प्रस्तुत अभिलेख एवं अभिलेख क्रमांक २४ के नीचे अभिलेख क्रमांक 'ब' उत्कीर्ण है जो दोनों से संबद्ध प्रतीत होता है। इसमें दो पंक्तियों में केवल एक श्लोक है। इसमें लिखा हुआ है कि उपरोक्त सभी श्लोक पंडित महीपाल द्वारा रचे गये थे एवं स्थिरदेव द्वारा उत्कीर्ण किये गये थे। परन्तु तीनों अभिलेखों का एक साथ अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि ये महीपाल द्वारा रचे गये थे जिसको अभिलेख क्रमांक 'ब' में पंडित कहा गया है और अभिलेख क्रमांक २४ में शृंगवास का पुत्र लिखा है। इसी प्रकार उत्कीर्णकर्ता का नाम अभिलेख क्रमांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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