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________________ १२८ परमार अभिलेख तिथि शुरु में संवत् ११३८ लिखी है। इसमें अन्य कोई विवरण नहीं है। यह १०८१ ई. के बराबर बैठती है। इसका ध्येय लार वर्ग के जसहर नामक व्यक्ति द्वारा देवी प्रतिमा की प्रतिष्ठापना करने का उल्लेख करना है। एम. बी. गर्दै ने अभिलेख के पाठ को भिन्न प्रकार से पढ़ कर अर्थ लगाया है। वे दसहर (दसहरा) पढ़ते हैं। इसी आधार पर उपरोक्त वर्ष में तिथि निर्धारित करते हैं। दसहरा पर्व वर्ष में तीन बार--चैत्र, ज्येष्ठ व आश्विन मासों में पड़ता है। प्रस्तुत अभिलेख में आश्विन अर्थात अक्तूबर मास होने की संभावना बलवती है। प्रतिमा पार्वती (दुर्गा) की है जिसका पूजन सारे देश में आश्विन मास में होता है। गर्दे के अनुसार इससे आगे के शब्द "अग्निथितां पणमति=अग्निस्थितां पार्वती"-अग्नि में स्थित पार्वती अथवा तपश्चर्या में लीन पार्वती, होना चाहिये। अभिलेख में यद्यपि किसी स्थान अथवा नरेश का नाम नहीं है फिर भी प्रस्तुत प्रतिमा का संबंध धारा नगरी से ही है। वैश्य जाति में लार वर्ग ही धार के प्राचीनतम वासियों में है। तिथि के आधार पर प्रतिमा का निर्माण एवं प्रतिष्ठापना-दोनों कार्य नरेश उदयादित्य (१०७०-१०९४ ईस्वी) के शासनकाल में की गई थी। उदयादित्य ही वह प्रख्यात नरेश है जिसने भोजदेव के उज्जवल शासन के उपरान्त जयसिंह प्रथम (१०५५-१०७० ईस्वी) के समय अवनत परमार साम्राज्य की पुनर्स्थापना की थी, और साहित्य व कलाओं का पुनरुत्थान किया। इसके शासनकाल में सुविख्यात कलाविदों व मूर्तिनिर्माताओं का प्रचुर आदर सम्मान होता था। मूर्ति का विवरण इस प्रकार है--प्रतिमा ग्यारहवीं शती की मूर्तिकला का सुन्दर नमूना है। देवी खड़ी है। चारों हाथ आभूषणों से अलंकृत हैं। सिर पर मुकुट है। देवी गहन चिन्तन की मद्रा में है। उसके चारों ओर आठ छोटी आकतियां हैं। दो आकतियां सिर के पास ओर, तथा दो टांगों के दोनों ओर हैं। दाहिनी ओर ऊपर की आकृति सृष्टि निर्माता ब्रह्मा की, व बांई ओर सृष्टि संरक्षक विष्णु की है । तीसरी आकृति ज्ञान के भण्डार गणेश की है जिसके वाहन मूषक की आकृति नीचे पादपीठ पर बनी है। चौथी आकृति संहारक शिव की है। चरणों के पास चार सेविकाओं की आकृतियां हैं, जिनमें से दो हाथों में चौरियां लिये खड़ी हैं व अन्य दो हाथ जोडे बैठी हैं। सेविकाओं के ऊपर दोनों ओर दो दो अन्य चिन्ह समान आकृतियां है जो मुकुट प्रतीत होते हैं। गर्दै महोदय के अनुसार ये अग्निकुंड हैं जिनमें से ज्वाला उभर रही है। इस प्रकार प्रस्तुत प्रतिमा में पार्वती पंचाग्नि साधन तप करती दिखाई गई है। इसके अन्तर्गत साधक पंचाग्नि के मध्य खड़ा होता है या बैठता है। पांचवीं अग्नि के रूप में सूर्य होता है। पुराणों के अनुसार पार्वती ने शिव को पतिरूप में प्राप्त करने हेतु तपस्या की थी। (मूलपाठ) १. सं. ११३८ [1] [ज]सहरः भ (अ)ग्निछि२. तां प्रन (ण)[म]तिः२ लारवर्ग' [1] (अनुवाद) संवत् ११३८ । लारवर्ग के जसहर द्वारा (स्थापित) अग्निस्थित पार्वती (की मूर्ति) [दसहरे (के अवसर पर) लारवर्ग (द्वारा स्थापित) अग्निस्थित पार्वती (की मूर्ति)] (१) श्री लेले ने इसको य पढ़ा, परन्तु विवरण में अ कर दिया। छाप में इसकी आकृति कुछ विचित्रसी है। (२) विसर्ग के बिन्दु अनावश्य हैं। (३) संभवतः लारवर्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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