SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ (२४) उदयपुर का उदयादित्य का उदयेश्वर मंदिर प्रस्तर अभिलेख ( संवत् ११३७ = १०८० ईस्वी) प्रस्तुत अभिलेख विदिशा जिले के बासौदा परगने के अन्तर्गत उदयपुर में नीलकंठेश्वर ( उदयेश्वर ) मंदिर के पूर्वी द्वार के भीतर लगे एक प्रस्तर खण्ड पर खुदा हुआ है । इसके अनेक बार उल्लेख किए जा चुके हैं । कनिंघम ने आ. स. रि., भाग १०, पृष्ठ ८३ पर; डी. आर. भण्डारकर ने प्रो. रि. आ. स. वे. स. १९१३-१४, पृष्ठ २२ पर और एम. बी. गर्दै ने ए. रि. आ. डि. ग., संवत् १९७४, क्र. १०५ पर इसके उल्लेख किये । परमार अभिलेख अभिलेख का क्षेत्र ४६x२७.९५ सें. मी. है । इसमें ६ पंक्तियां हैं। अक्षरों की सामान्य लम्बाई ४ सें. मी. है । अभिलेख की स्थिति अच्छी है। इसकी लिखावट ११ वीं सदी की नागरी है। अक्षरों की बनावट सुन्दर है । वे ढंग से एवं गहरे खुदे 1 वर्ण विन्यास की दृष्टि से श के स्थान पर स का प्रयोग किया गया है । र के बाद काव्यञ्जन दोहरा बना दिया गया है । पंक्ति १ में च्छत्रां में पुनरावृत्ति है । इन सभी अशुद्धियों को पाठ में सुधार दिया गया है । भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है । इसमें अनुष्टुभ छन्द में एक श्लोक है । शेष अभिलेख गद्य में है । अभिलेख की तिथि पंक्ति ५ में अंकों में दी है । यह संवत् ११३७ वैसाख सुदि ७ है । इसमें दिन का उल्लेख नहीं है । इससे पूर्व सूर्य के संक्रमण का उल्लेख है । साथ ही करण है, परन्तु उसका नाम नहीं है । इस कारण तिथि का प्रमाणीकरण संभव नहीं है। विगत विक्रम संवत् के आधार पर गणित करने पर यह सोमवार, ३० मार्च १०८० ईस्वी के बराबर बैठती है । अभिलेखका प्रमुख ध्येय पंक्ति क्र. ६ में दिया हुआ है। इसके अनुसार उपरोक्त तिथि को उदयादित्य द्वारा श्री उदयेश्वरदेव के मंदिर पर ध्वजारोहण के मांगलिक कार्य के सम्पन्न करने का उल्लेख करना है । अभिलेख के प्रारम्भ में नरेश उदयादित्य के लिये सिद्धियुक्त आशीर्वाद है जिसने सारी पृथ्वी को अपने एक छत्र के अधीन कर दिया । पंक्ति ३ में लिखा है कि वह पृथ्वी पर ऐश्वर्य से यश का सम्पादन करे । आगे सूर्य के संक्रमण व करण का उल्लेख परन्तु इसका ठीक अर्थ अनिश्चित है। यहां 'रवि' के उल्लेख से संभवत: नरेश के नाम के उत्तरार्द्ध 'आदित्य' पर जोर देना है । इसी प्रकार उदयपुर प्रशस्ति ( क्र. २२) एवं कुछ अन्य अभिलेखों में उदयार्क, आदित्य, भास्वान आदि शब्दों द्वारा उसका उल्लेख किया गया है । परन्तु संभव है कि यहां सूर्य के किसी अन्य राशि पर संक्रमण का उल्लेख किया गया हो । अभिलेख के श्लोक का स्चयिता पंडित शृंगवास का पुत्र पंडित महीपाल था। यहां मंदिर का नाम "उदयेश्वर देव का मंदिर" लिखा है जो उसके निर्माता नरेश के नाम पर ही है । यह विचारणीय है कि यहाँ शासनकर्ता नरेश उदयादित्य की वंशावली अथवा वंश का नाम नहीं दिया हुआ है । परन्तु अभिलेख के प्राप्ति स्थान, एवं उसमें अंकित तिथि से यह निश्चित होता है कि उदयादित्य वास्तव में परमार वंशीय नरेश ही था जिसके अनेक अभिलेख इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy