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उदयपुर अभिलेख
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कर्णाट, लाटपति, गुर्जर नरेश व तुरुष्कों, जिनमें मुख्य चेदि नरेश इन्द्ररथ, तोग्गल तथा भीम थे, की सेनाओं को जिसके भृत्यमात्रों ने ही विजित कर लिया व इस कारण जिसकी पारम्परिक सेनाओं के बाहुबल की उग्रता की गणना की जाती है, उसके योद्धाओं की नहीं की जाती (क्योंकि योद्धाओं की तो अभी बारी भी नहीं आ पाई थी) ।।१९।।
जिसने चारों ओर केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ, सुंडीर, काल, अनल व रुद्र आदि के मंदिरों का निर्माण कर पवित्र पृथ्वी को यथार्थ नाम वाली बनाया ।।२०।।
शिव भक्त (राजा भोज), जिसका प्रताप सूर्य के समान था, के स्वर्ग चले जाने पर, धारा नगरी के समान सारी पृथ्वी शत्रु रूपी अंधकार से व्याप्त हो गई तथा उसके पारम्परिक योद्धाजन दुर्बल हो गये, तब सूर्य के समान उदयादित्यदेव उन्नत शत्रुरूपी अंधकार को खड्गदण्ड की किरणों से नष्ट करके समस्त जनों के मनों को आनन्दित करता हुआ उदित हुआ।।२१।।
जो (पृथ्वी उद्धार का) कार्य वराह अवतार ने किया, वह भूमि उद्धार का कार्य इस परमार ने कितनी सुगमता से किया, यह कितना आश्चर्य है ।।२२।।
(२३) उदयपुर का उदयादित्य कालीन प्रस्तरखण्ड अभिलेख
(उत्तरार्द्ध व तिथि रहित) प्रस्तुत प्रस्तरखण्ड, जो उदयपुर प्रशस्ति (क्र. २२) का उत्तरार्द्ध है, उदयपुर में चतुआ दरवाजा मुहल्ले में एक धीवर के घर से प्राप्त हुआ था। इसका उल्लेख ए. रि. आ. डि. ग., १९२५-२६, क्रमांक ७१, पृष्ठ १२-१३ पर किया गया है। प्रस्तरखण्ड पुरातत्व संग्रहालय, ग्वालियर में रखा है ।
अभिलेख में कुल २७ पंक्तियां उत्कीर्ण हैं। इसकी भाषा संस्कृत है व सारा पद्यमय है। परन्तु प्रस्तर खण्ड बुरी तरह घिसा हुआ है। इस कारण इसको पूर्णत: पढ़ना असंभव ही है । फिर भी यहां वहां जो अंश पढ़े जा सकते हैं उनके आधार पर निम्न तथ्य सामने आते हैं।
पंक्ति क्र. १-६ में उदयादित्य की कुछ सैनिक सफलताओं का विवरण है। इनमें से केवल डाहल के चेदि शासक (डाहलाधीश) पर विजय प्राप्त कर उसके संहार करने का उल्लेख है। साथ ही उदयपुर नगर के निर्माण का भी उल्लेख है। परमार राजवंशावली उदयादित्यदेव तक ही वर्णित है। इसके उपरान्त पंक्तियों में उसके अधीन नेमक वंश के नरेशों का विवरण है । प्रतीत होता है उदयादित्य ने नेमक वंशीय अधीनस्थ सामन्त पर उदयपुर व उसके आस पास से क्षेत्र का शासन भार डाला था। उसी के माध्यम से प्रस्तुत उदयपुर प्रशस्ति निस्सृत की गई थी। परन्तु प्रस्तर खण्ड के अत्याधिक क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण उक्त वंश के नरेशों का पूर्ण विवरण पढ़ने में नहीं आता। फिर भी उसका प्रारम्भिक शासक संभवतः रुद्रादित्य था। नेमक वंशीय शासक शैव मतावलम्बी थे। आगे शुद्रक नामक एक अन्य नरेश का उल्लेख है जिसने किसी एक गुर्जर नरेश पर विजय प्राप्त की थी। उसके पुत्र, जिसका नाम पढ़ने में नहीं आता है, ने उदयपुर में मंदिर का निर्माण करवाया था। अभिलेख का मुख्य ध्येय उसी मंदिर के निर्माण का उल्लेख करना है।
प्रस्तर खण्ड में तिथि का अभाव है। यदि तिथि का उल्लेख रहा होगा तो अभिलेख के घिस जाने के कारण उसका पढ़ना असम्भव हो गया है ।
. इस प्रकार प्रस्तुत प्रस्तर खण्ड से, इसके पूर्वाद्ध में प्राप्त तथ्यों से अधिक कोई नवीन सूचना सामने नहीं आती।
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