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________________ १२४ परमार अभिलेख की गाय का बलात् हरण किया, तब उस (वसिष्ठ) के प्रभाव से अग्निकुण्ड में से एक वीर उत्पन्न हुआ जिसने अकेले ही शत्रु सैन्य का नाश किया ॥५॥ शत्रुओं को मार कर वह गाय को वापिस ले आया, तब मुनि ने कहा-"तुम परमार नाम से राजा होगे ।।६।। . उस वंश में अखिल यज्ञ समूह से तृप्त देवताओं के द्वारा जिसकी कीति गाई जा रही है व जो द्विज समूह में रत्न के समान हैं और जिसने अपने पराक्रम से उच्च राजत्व का मान प्राप्त कर लिया है ऐसा उपेन्द्रराज (नरेश) हुआ ॥७॥ उसका पुत्र वैरिसिंह था जो राजारूपी हाथियों के लिये सिंह के समान था, जो पराऋमियों में सबसे बलवान था और जिसने चारों समुद्रों से युक्त पृथ्वी पर प्रशस्तियुक्त जयस्तम्भ स्थापित किये ।।८।। उसके श्री सीयक (उत्पन्न) हुआ जिसका पादपीठ पृथ्वी के नरेशों के मुकुटों के रत्नप्रभा से रंजित होता था तथा जिसकी तलवार की जल लहरियों में शत्रुसमूह डूब जाते थे, जो विजयी राजाओं में सर्वश्रेष्ठ था ।।९।। उससे श्री वाक्पति हुआ जो अवंति की युवतियों के नयन कमलों के लिये सूर्य के समान था, अपने हाथ की तलवार की चमक से जो स्वयं प्रकाशमान था, जो इन्द्र के समान था तथा जिसके अश्व गंगा व समुद्र के जलों का पान करते थे ।।१०।। उससे वैरिसिंह नामक पुत्र हुआ जो वज्रटस्वामि नाम से भी लोक में प्रसिद्ध था, जिसकी खड्ग की धारा से शत्र समूह के मारे जाने के कारण श्रीयुक्त धारा नगरी सूचित (विख्यात) हुई ।।११।। उससे श्री हर्षदेव हआ जिसके नगाड़ों का घोष शत्रसंघ की सेनाओं में गरजने वाले श्रेष्ठ हाथियों की गर्जना के समान सुन्दर था, जो (नागभक्षी) गरुड़ के समान प्रतापी था व जिसने युद्ध में खोट्टिगदेव की लक्ष्मी को छीना था ।।१२।। उसका पुत्र जो संपूर्ण पृथ्वी के लिये आभूषण रूप था, जो गुणों का एकमात्र आश्रय था, शौर्य से जीते समस्त शत्रुओं से धन प्राप्ति के द्वारा जिसके कोष में वृद्धि होती थी, जो वक्तृत्व, उच्च कवित्व, तर्क प्रवीणता तथा शास्त्र आगम में निष्णात था तथा सज्जनों के द्वारा श्रीमत वाक्पतिराजदेव के नाम से जिसकी कीर्ति गाई जाती है ।।१३।। जिसके पदकमल कर्णाट लाट केरल चोल (नरेशों) के मुकुट रत्नों से रंजित होते थे और जो प्रार्थना करने वाले याचकों की इच्छा पूर्ति के लिये कल्पवृक्ष के समान विख्यात था ॥१४॥ त्रिपुरी नगरी में विजय की इच्छा करने वाले उसने युद्ध में युवराज को जीतकर तथा उसके सेनापतियों को मार कर अपनी खड्ग को ऊंचा किया ।।१५।। उसके छोटे भाई श्री सिंधुराज ने हूणराज को जीत कर विजयश्री प्राप्त की। जिससे भोजराज उत्पन्न हुआ। जिसने उत्तम व्यक्तियों को भी कंपा दिया व जो अद्वितीय रत्न था ॥१६।। जिसने कैलाश से मलय तक तथा उदयाचल से अस्ताचल तक संपूर्ण पृथ्वी का पृथुराज के समान उपभोग किया, जिस ने अपने धनुष की डोरी से सहज ही में दिक्पालों को उखाड़ कर दिशाओं में फेंक दिया तथा जिसने पृथ्वी को परमप्रीति से प्रसन्न किया ।१७।। ___ जो उसने साध्य किया (प्राप्त किया), जो आदेश किया, जो दिया, जो ज्ञात किया वह कोई न कर सका। कविराज श्री भोज की इससे अधिक प्रशंसा क्या हो सकती है ।।१८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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