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________________ १२३ उदयपुर प्रशस्ति आ कैलासान्मलयगिरितोऽस्तोदयाद्रिद्वयादा भुक्ता पृथ्वी पृथु नरपतेस्तूल्यरुपेण येन । उन्मूल्योर्वीभरगुरु[ग]णा लीलया चापयज्या (यष्ट) क्षिप्ता दिक्षु क्षितिरपि परां प्रीतिमापादिता च ।।१७।। साधित विहितं दत्तं ज्ञातं तद्यन्न केनचित् । किमन्यत्कविराजस्य श्रीभोजस्य प्रशस्यते ।।१८।। चेदीश्वरेंद्ररथातोग्ग]ल[भीममुख्यान कर्णाट लाटपति गूजरराट्तुरू ___ष्कान् । यद्धृत्यमात्रविजितानवलोक्य]मौला दोष्णां वलानि कलयंति न योद्ध]लोकान्] ।।१९।। केदार रामेस्व (श्व) र सोमनाथ [सुं]डीर कालानलरुद्र-- सत्कैः । सुराश्रयाप्य च यः समन्ता (ना) द्यथार्थसंज्ञां जगतीं चकार ।।२०।। तत्रादित्यप्रतापे गतवति सदनं स्वग्गिणां भर्ग (1) भक्ते व्याप्ता धारेव धात्री रिपुति * मिरभैरम्मौ ललोकस्तदाभूत् । विश्वस् (स्रस्)तांगो निहित्योद्भटरिपुति[मिरभ]रं खगदंडांसुजालैरन्यो भास्वानिवोद्यन्धुतिमुदित जनात्मोद-. यादित्यदेवः ॥२१॥ येन धरणीवराहः परमारेणोद्धृतो] निरायासा[त्] । [तस्यतस्या भू]मेरुद्धारो वत कियन्मात्रः ।।२२।। [कुंवान्य. . . . .] तवाजिव्रजरु- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - (अनुवाद) १. ओं। शिव को नमस्कार । जिसके मस्तक पर चन्द्रमा की निर्मल कांतियुक्त कला कल्पवल्लि के समान शोभायमान है तथा जिसके गले में गंगाजल से सिंचित सर्पमाला है, ऐसे शंभु तुम्हारा कल्याण करें ॥१॥ मदमस्त नन्दी के हाथों से बजाये गये हुए (मृदंग) नाद से तथा नारद के मनोहर गायनों के साथ स्वर्ग की अप्सराएं सदा जिसके आगे नृत्य करती हैं ऐसे शिव तुम्हारा कल्याण करें ॥२॥ जिसने शंभु के सिर पर स्थित गंगा को सहन नहीं किया व जिसने शंकर के आधे शरीर का आश्रय लिया, स्वयं को शंकर के शरीर में स्थित देख कर जिसके सारे अवयव तुष्ट हो गये, ऐसी पर्वतराजपुत्री (पार्वती) तुम्हें समृद्धि प्रदान करे ॥३॥ अपने परमभक्तों के महत् पापों का नाश करने के लिये मानो उद्यत होकर जिसने हाथ में तीक्ष्ण परशु को धारण किया है ऐसे गणेश तुम्हें सुख प्रदान करें ।।४।। पश्चिम दिशा में हिमगिरिपुत्र अर्बुद नामक एक बड़ा पर्वत है, जो सिद्ध दंपत्तियों की सिद्धि का स्थान है व जो ज्ञानवानों को वांछित फल देता है, जहां विश्वामित्र ने वसिष्ठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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