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________________ ११८ परमार अभिलेख प्रतीत होता है कि सिंधुराज ने हूणों पर अंतिम विजय प्राप्त की थी। हूणों से संघर्ष उसके पिता सीयक द्वितीय के शासन काल में प्रारम्भ हुआ, उसके भाई वाक्पति द्वितीय के शासन काल में चालू रहा और उसके स्वयं के शासन काल में इसका अन्त हो गया। इस समय हूण राज्य सदा के लिए परमार राज्य में आत्मसात कर लिया गया। सिंधुराज के शासन काल के उपरान्त परमारहूण संघर्ष का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। सिंधुराज के शासन की तिथियां निर्धारित करने में भी कठिनाई है, क्योंकि निश्चित साक्ष्यों का अभाव है। अनुमानतः उसका राज्यकाल ९९७ ई. और १०१० ई. के मध्य होना चाहिए। संभवतः ९९७ ई. में वाक्पति द्वितीय की चालुक्य राजधानी में हत्या कर दी गई थी, तभी सिंधुराज सिंहासनारूढ़ हुआ होगा, और १०११ ईस्वी से पूर्व उसका पुत्र भोजदेव गद्दी पर आसीन हो गया था जब उसने मोडासा अभिलेख (क्र. ८) निस्सृत किया था। इसके उपरान्त श्लोक क्र. १६-२१ में भोजराज की प्रशंसा है। श्लोक क्र. १९ में भोजराज द्वारा कर्णाट, लाटपति, गुर्जर नरेश, तुरुषकों, चेदि नरेश, इन्द्ररथ, तोग्गल तथा भीम पर विजय प्राप्त करने का वर्णन है। ___ कर्णाटों पर भोजराज की विजय का कालवन अभिलेख (क्र. १८) व वल्लाल कृत भोजचरित् में उल्लेख है । भोजराज ने अपने पितृव्य (ताऊ) वाक्पति द्वितीय के अपमान का बदला लेने के लिए कर्णाट के चालुक्य नरेश संभवतः जयसिंह द्वितीय (१०१५-१०४२ ईस्वी) पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में भोज की सहायतार्थ कल्चुरि नरेश गांगेयदेव व दक्षिण के राजेन्द्रचोल (कुलेनूर अभिलेख, एपि.ई., भाग १५, पृष्ठ ३३१ व आगे) सम्मिलित हुए थे जो चालुक्यों के कट्टर शत्रु थे। यह युद्ध गौतमगंगा (गोदावरी) नदी के किनारे पर हुआ था। लाट राज्य पर पूर्व में भोजराज के पिता सिंधुराज ने वहां के शासक गोग्गीराज को हरा कर विजय प्राप्त की थी। अब उसके पुत्र कीर्तिराज को भोजराज ने हराया। कीर्तिराज के पौत्र त्रिलोचनपाल के एक अभिलेख में लिखा मिलता है कि कुछ समय के लिए कीर्तिराज की कीर्ति उसके शत्रुओं द्वारा धूमिल कर दी गई (इं. ऐं., भाग १२, पृष्ठ २०१-३) । कीर्तिराज के सूरत अभिलेख से ज्ञात होता है कि १०१८ ईस्वी में वह लाट का राज्याधिकारी था (पाठक कोमेमोरेशन वाल्यूम, पृष्ठ २८७३०३)। इस तिथि के पश्चात् ही संभवतः लाट भोजराज के प्रभावक्षेत्र में आ गया। गुर्जर नरेश भीम प्रथम चौलुक्य का भोजराज प्रथम से संघर्ष का विषद् वर्णन मेरुतुंग कृत प्रबन्धचिन्तामणी में प्राप्त होता है (पृष्ठ ३२-३३)। जिस समय भीम प्रथम सिंध पर आक्रमणकारी हो रहा था, तब भोजराज ने अपने सेनापति को गुजरात पर आक्रमण करने भेजा। उसने चौलुक्य राज्य पर आक्रमण किया, राजधानी अण्हिलपट्टन को लूटा, राजप्रासाद के सिंहद्वार पर कौडियां बो दी और गुर्जर प्रधानमंत्री से बलात् एक जयपत्र लिया । चौलुक्यों की क्षति इतनी अधिक थी कि 'कुलचन्द्र की लूट' एक किंवदन्ति बन गई। प्रस्तुत अभिलेख में भीम पर विजय का नाम लेकर उल्लेख है। तुरुष्कों अर्थात मुस्लिम आक्रमणकारियों से भोजराज को संभवतः सीधे कोई युद्ध नहीं करना पड़ा था। यह इसलिए भी संभव है कि उसके शासनकाल में मुसलमानों ने मालवा पर कभी आक्रमण नहीं किया था। प्रस्तुत अभिलेख में उल्लेख है कि भोजराज ने केवल भृत्यमात्रों अर्थात् भाड़े के सैनिकों द्वारा ही तुरुष्कों को पराजित कर दिया। अतः संभव है कि उसने भाड़े के सैनिकों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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