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________________ उदयपुर प्रशस्ति ११७ वसन्ताचार्य को तडार (तड़ाग क्षेत्र) पिप्परिका प्रदान करने का उल्लेख है। इसी प्रकार गाऊनरी अभिलेख (क्र. ६) में भी देश के विभन्न प्रदेशों से देशान्तरगमन करके आए २६ ब्राह्मणों को दान देने का उल्लेख है। इनके कुछ अन्य लेखक व उनकी कृतियों का विवरण इस प्रकार है--नवसाहसांकचरित् का रचयिता पद्मगुप्त; नाटक कला पर दशरूपक का लेखक धनञ्जय ; उसका भाई धनिक जिसने दशरूपक पर दशरुपावलोक नामक टीका एवं काव्यनिर्णय नामक ग्रन्थ लिखे; पाइयलच्छीनाममाला व तिलकमंजरी के रचयिता धनपाल व उसका अनुज शोभन; और दक्खिन से देशान्तरगमन करके आया भट्टहलायुध जिसने पिंगलछन्दशास्त्र पर मृतसंजीवनी नामक टीका लिखी। इनके अतिरिक्त भी अनेक विद्वान रहे होंगे जिनके नाम आज हमें ज्ञात नहीं हैं। इस प्रकार यह निर्विवाद है कि प्रस्तुत अभिलेख में वाक्पतिराजदेव के लिए प्रशंसात्मक शब्दों का प्रयोग ठीक ही किया गया है। वाक्पतिराजदेव द्वितीय के शासनकाल की तिथि ठीक से निश्चित करना सरल नहीं है क्योंकि संबंधित साक्ष्यों का अभाव है। फिर भी संभावित तिथि ९७४ से ९९७ ईस्वी तक निश्चित की जा सकती है। श्लोक क्र. १६ में उसके छोटे भाई श्री सिंधुराज का उल्लेख है। नवसाहसांकचरित् (सर्ग ११, श्लोक ९२) एवं विभिन्न प्रबन्धों से इस तथ्य की पष्टि होती है कि वाक्पतिराजदेव द्वितीय के पश्चात् उसका अनुज सिंधुराज राज्य का अधिकारी हुआ। इसके अनेक विरुदों का उल्लेख मिलता है-नवसाहसांक, नवीनसाहसांक, कुमारनारायण, मालवैकमृगांक, अवन्तितिलक, अवन्तीश्वर, परमार महीभृत व मालवराज । परन्तु अभी तक हमें इस नरेश का कोई अभिलेख प्राप्त नहीं हुआ है। तथापि उत्तरकालीन परमार राजवंशीय अभिलेखों में दी गई वंशावली में इसका सर्वत्र नामोल्लेख है। नवसाहसांकचरित् (सर्ग १०, श्लोक क्र. १४-२०) में सिंधुराज की विजयों में कोसल राजकुमार, वागड, लाट व मुरल के उल्लेख हैं। इनके अतिरिक्त एक नाग राजकुमारी से उसकी परिणय कथा तो इस ग्रन्थ का आधार ही है। परन्तु प्रस्तुत अभिलेख में उसके केवल हूणराज पर विजयश्री प्राप्त करने का ही उल्लेख है। वर्तमान में यह निश्चित करना सरल नहीं है कि यह हूणराज कौन व कहां पर था। नवसाहसांकचरित व परमार अभिलेखों में उल्लिखित हूण राजकुमारों पर सीयक द्वितीय, वाक्पति द्वितीय व सिंधुराज द्वारा विजय प्राप्त करने से यह अनुमान होता है कि हूण राज्य परमार साम्राज्य की सीमा से बहुत दूर नहीं रहा होगा। वाक्पतिराजदेव द्वितीय के गाऊनरी अभिलेख (क्र. ६) के आधार पर यह कहना संभव है कि यह परमार राज्य के दक्षिणपूर्व में स्थित था। उक्त अभिलेख में उल्लिखित वणिका ग्राम, जो आवरक भोग में था, हूण मंडल के अन्तर्गत था। गाऊनरी वर्तमान में इन्दौर क्षेत्र में स्थित है। अतएव व णिका ग्राम गाऊनरी से अधिक दूर नहीं होना चाहिए अथवा इन्दौर क्षेत्र में ही होना चाहिए। एक चेदि अभिलेख में भी हूणों के उल्लेख से भी यही निष्कर्ष निकलता है, जिसके अनुसार चेदि नरेश कर्ण ने हूण राजकुमारी आवलदेवी से विवाह किया था (का. इं. इं., भाग, ४, प्रस्तावना, पृष्ठ १०२, १६५; अभिलेख क्र. ५६-५७, श्लोक क्र. १५)। प्रतिपाल भाटिया के अनुसार (दी परमार्स, १९७०, देहली, पृष्ठ ४०) इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि हूण राज्य परमार व चेदि राज्यों के मध्य स्थित एक छोटा राज्य था । इस आधार पर हूण मंडल होशंगाबाद जिले अथवा महू से लगते विंध्य क्षेत्र व नर्मदा नदी के उत्तर में निश्चित किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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