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________________ १०८ परमार अभिलेख उदयादित्य के भोजदेव का 'भ्राता' होने के संबंध में यह विचारणीय है कि यदि वे दोनों वास्तव में 'सहोदर' थे, तो उदयादित्य का जन्म उनके पिता सिंधुराज को मृत्यु से पूर्व अथवा मृत्यु के कुछ ही मास के भीतर हो जाना चाहिये । वर्तमान में हमें सिंधुराज की मृत्यु की तिथि निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है । उसका पुत्र भोजदेव १०११ ईस्वी में मालव राजसिंहासन पर आरूढ़ था ( अभिलेख = ) | परन्तु उसका राज्यारोहण कब हुआ था सो भी अज्ञात है । इस समय केवल यही कहा जा सकता है कि उपरोक्त संभावना के आधार पर उदयादित्य का जन्म इससे पूर्व हो चुका था । यदि यह सत्य है तो उदयादित्य को भोजदेव की १०५५ ईस्वी में मृत्यु हो जाने पर सामान्य रूप से राज्यारूढ़ हो जाना चाहिये था और १०७० ईस्वी तक, जब वह वास्तव में नरेश बना, प्रतीक्षा करने का प्रश्नही उपस्थित नहीं होता । इसके अतिरिक्त उस समय उसकी आयु कितनी अधिक रही होगी सो भी विचारणीय है । फिर यह भी कैसे संभव है कि भोजदेव के सहोदर उदयादित्य का कभी भी किसी भोजकालीन अभिलेख, विजय अभियान, अथवा ग्रन्थ आदि में किसी संदर्भ में कोई उल्लेख ही नहीं प्राप्त हो । सर्वप्रथम प्रोफेसर कीलहार्न ने १९१४ ई. में मत प्रकट किया था कि उदयादित्य भोजदेव का बंधु था (एपि. इं., भाग २, पृष्ठ १८० व आगे ) । परन्तु बंधु का अर्थ दूर का संबंधी अथवा भाई दोनों ही हो सकता है । अतः उदयादित्य को भोजदेव का दूर का भाई मान लिया गया । बाद में गांगूली महोदय ने भी इसी मत का समर्थन किया और इसकी पुष्टि में आईने अकबरी में उल्लिखित, कुछ परिवर्तित रूप में, इस घटना की क्षीण स्मृति का उल्लेख किया है कि “मुंज ने ईश्वर को धन्यवाद किया, बड़े स्नेह से भोज का स्वागत किया, और इसको अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, और जब उसके पुत्र जयचन्द्र ( जयसिंह ) का शासन समाप्त हुआ तब उसका स्थान लेने के लिये पोंवार (परमार) जाति में कोई न था । पोंवार (परमार) जाति का जितपाल (उदयादित्य ), जो एक प्रमुख भूमिस्वामी ( सामन्त ) था, सिंहासन के लिये चुना गया और इस तरह भाग्य के उलटफेरों से अधीश्वरता उसके वंश में चली गई । " ( प. रा. ई. गां., पृष्ठ ९८ ) । उपरोक्त मत का विरोध एच. सी. रे ( डायनेस्टिक हिस्ट्री ऑफ नार्दर्न इंडिया, भाग २, पृष्ठ ८७६) और वी. वी. मिराशी (एपि. इं., भाग २६, पृष्ठ १८४ ) ने किया है। मिराशी का कथन है कि नागपुर अभिलेख ( साक्ष्य ३) के उल्लेख, कि उदयादित्य भोजदेव का बंधु था, से यह अर्थ नहीं निकलता कि प्रथमोक्त उत्तरोक्त का दूर का संबंधी था, क्योंकि बंधु का अर्थ भाई भी होता है । आगे जैनड अभिलेख ( साक्ष्य क्र. ४ ) में उल्लेख है कि जगद्देव का उदयादिता पिता व भोजदेव पितृव्य ( चाचा ) था । और डोंगरगांव अभिलेख ( साक्ष्य ५ ) में तो साफ लिखा मिलता है कि उदयादित्य भोजदेव का भ्राता था । अतः यह निश्चित ही है कि उदयादित्य भोजदेव का सगा भाई ( सहोदर ) था । ( स्ट. इं. मि. १९६१, भाग २, पृष्ठ ७३-७९)। अपने मत पर जोर देते हुए डी. सी. गांगूली पुनः लिखते हैं (इं. हि. क्वा., भाग १८, सितम्बर १९४२, पृष्ठ २६६-६८ ) कि बंधु का सामान्यतः अर्थ संबंधी होता है ( गोविन्द चतुर्थ का कैम्बे ताम्रपत्र अभिलेख, एपि. इं, भाग ७, पृष्ठ ३८, श्लोक २२, में बंधु का अर्थ संबंधी है ) । वैसे इसका अर्थ भाई भी होता है । भ्राता का अर्थ भाई और पितृव्य का अर्थ चाचा होता है । परन्तु भ्राता का अर्थ समीपी संबंधी व समीपी मित्र और पितृव्यः का अर्थ कोई बड़ा पुरुष संबंधी भी होता है ( मोनियर विलियमस संस्कृत कोष ) । ऐतिहासिक तथ्यों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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