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________________ उदयपुर अभिलेख १०९ हमें ज्ञात है कि पालवंशीय जयपाल देवपाल का चचेरा भाई था, परन्तु भागलपुर अभिलेख में जयपाल को देवपाल का भ्राता लिखा मिलता है (इंडियन एंटिक्वेरी, भाग १५, पृष्ठ ३०४, श्लोक ६)। अतः जैनड व डोंगरगांव अभिलेखों के आधार पर यह कहना गलत होगा कि उदयादित्य भोजदेव का सहोदर (सगा भाई)था। गांगली आगे लिखते हैं कि उदयपुर अभिलेख (साक्ष्य २) में परमार राजवंश के संस्थापक उपेन्द्र से लेकर भोजदेव तक सभी नरेशों के संबंधों का सावधानीपूर्वक उल्लेख किया गया है, परन्तु उदयादित्य के भोजदेव से संबंध के बारे में पूर्णत: मौन है । यह मौन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त नागपुर प्रशस्ति (साक्ष्य ३) में लिखा मिलता है कि उदयादित्य भोजदेव का बंधु था जबकि नरवर्मन लक्ष्मदेव का भ्राता था। इस प्रकार उस अभिलेख में बंधु व भ्राता में सावधानीपूर्वक अन्तर दिखाया गया है । अतः उदयादित्य के भोजदेव के संबंध के बारे में भावी साक्ष्य के प्राप्त होने तक प्रतीक्षा करना ही उपयुक्त है। परन्तु वर्तमान में उपरोक्त विवाद पर पूर्णतः विचार करने पर डी. सी. गांगूली के मत से सहमत होना ही उचित प्रतीत होता है। (विशेषः- इन पंक्तियों के छपने के समय तक प्रस्तुत अभिलेख की मूल छाप प्राप्त हो गई है, जो साथ छापी जा रही है)। -लेखक मूलपाठ १. सिधि: श्री गणेश ओं नमः ओं परब्रह्मणे नमः ।। वक्रपञ्चत्रिनेत्रं ससितिलकक्रितं' मौलिगंगाप्रवाहां भस्मांगां नीलकण्ठं दशभुत भुजसहित व्यालसोभासुभावं । अर्धांगेहैमवत्यां वरण २. धनू' पुरंमाभ, सिंहैर्वद्वाहनाभ्यां सुभमतिकरणं पार्वती सं११प्रणम्य ॥(१॥) श्रीमान् पावार वस्यो'२नृपतिच विवुध मालवंराज्यं क्रित्वा विदात सूरवीर भवंतिषलमिदैत् पापिनां भूषरहा। ३. तेभ्यः१४ पुत्र: प्रसिध' ५ सकलगुणजुतं१६ गन्दलोदेवमभि:१७ दातामोक्ता विवेकीरिपु सकल ८जितं आत्मकीत्ति प्रसिधि: (॥२॥) पाता तस्यात्मजाता ९ अरिवलमथनं पुव२ ° राज्यं च प्रापि पूर्व २१ वंसानुकीतिलमति । ४. तमहीं मालवेमध्यदेशं गत्वास्थानंप्रसिधः२२ भवति श्रुतमति कीर्तयो देवपोज्यं धर्म क्रि२३त्वातपस्या २४ बहु सलिलमयं चोतुमं२' चाप्यकुर्जा (॥३।।) देवालय वहुकारी । नपिसवाल्यंव १. जे. ऐ. एस. बी., भाग ९, पृष्ठ ५४५ पर आधारित २. द्धि ३. पंचास्यत्रि ४. शशिकृततिलकं ५. हं ६. गं ७. भुत अनावश्यक है ८. शो ९. त्यामणि कनक १०. लसन्नूपुरांध्रयासुशोभं सिंहोक्षभ्यांसमेतंश्रु ११. शं १२. श्यो १३. रतिवुधो धार्मिकोमानवेशो राज्यं कृत्वा प्रदातारवपरवलयुतः शूरवीरो बभूव । १४. पुत्रस्तस्य १५. द्धि १६. युतो १७. भक्तो १८. सकलरिपुजयीरवीयकीया॑प्रसिद्धः १९. जन्माश्रु २०. नः पूर्व २१. समाप्यप्रान्वंशस्यप्रसिद्ध परनृपतिहतं २२. द्धोहिमरुचिसुयशादेवकार्यं च २३. कृ २४. स्मिंस्तडाग २५. शैवगेहंचकार । नानादि वालयं च व्ययमपिकृतवान् धान्यहेम्नोद्धिजेभ्यः मुंत्रयोग्यं नरेशं सनृपतिरुदयादित्यमात्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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