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परमार अभिलेख
में कोई अन्य राजकुमार इतना सशक्त नहीं था जो उस संकटपूर्ण स्थिति में मालवराज्य की बागडोर संभाल सकता । अत: राज्यशक्ति उदयादित्य को प्राप्त हो गई, जिसका अधिकार सर्वोपरि था।
अब प्रमुख प्रश्न यह उपस्थित होता है कि उदयादित्य का भोजदेव से क्या संबंध था। इस समस्या पर प्रकाश डालने वाले निम्नलिखित अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध होते हैं१) उदयादित्य के शेरगढ़ अभिलेख (क्रमांक २९) की पंक्ति ५-६ में उल्लेख है--
“परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री भोजदेव पादानुध्यात परमभट्टारक महाराजा
धिराज परमेश्वर श्री उदयादित्यदेव : कुशली।" २) उदयपुर प्रशस्ति (क्रमांक २२) के श्लोक २१ में उल्लेख है :--
तत्रादित्य प्रतापे गतवति सदनं स्वरिंगणां भर्गभक्ते व्याप्ता धारेव धात्री रिपुतिमिर भरैम्मौ ललोकस्तदाभूत । विश्वस्तांगो निहत्योद्भटरिपुति[मिरभ]रं खड्गदंडासुजाल
रन्यो भास्वानिवोधन्धुति मुदित जनात्मोदयादित्यदेवः ।।२१।। "शिवभक्त (भोजदेव), जिसका प्रताप सूर्य के समान था, के स्वर्ग चले जाने पर, धारा नगरी के समान जब सारी पृथ्वी शत्ररुपी अंधकार से व्याप्त हो गई तथा उसके पारम्परिक योद्धाजन दुर्बल हो गये, तब सूर्य के समान उदयादित्यदेव, उन्नत शत्रुरुपी अंधकार को खड्गदण्ड की किरणों से नष्ट कर समस्त जनों के मनों को आनन्दित
करता हुआ, उदित हुआ।" ३) नागपुर प्रशस्ति (क्रमांक ३६) के श्लोक ३२ में लिखा है
तस्मिन्वासव व (ब)न्धुतामुपगते राज्ये च कुल्याकुले भग्नस्वामिनि तस्य व (ब)न्धुरुदयदित्योभवद्भूपतिः । येनोद्धृत्य महार्णवोपममिलत्कर्णाट कर्ण प्रभृ
त्यु-पालकर्थितां भुवमिमां श्रीमद्वराहापितं ॥३२।। "उस (भोजदेव) के इन्द्र की बंधुता को प्राप्त (दिवंगत) होने पर और राज्यस्वामी के कौटुम्बिकों के संघर्षरुपी जल में मग्न होने पर, उसका बंधु उदयादित्य नरेश हुआ, जिसने महासमुद्र के समान संयुक्त रूप से कर्णाट कर्ण आदि नृपतियों के द्वारा पीड़ित इस पृथ्वी का उद्धार कर के वराह अवतार का अनुकरण किया।" जगद्देव के जैनड अभिलेख (क्रमांक ४३) के श्लोक ६ में उल्लेख है--
यस्योदयादित्य नृपः पितासी, देवः पितृव्यः स च भोजराजः ।
विरेजतुयौं वसुधाधिपत्य, प्राप्त प्रतिष्ठाविव पुष्पवन्तौ ।।६।। "जिसका पिता उदयादित्य था और देव भोजराज चाचा था, विकसित होने वाले जो दोनों शीघ्र ही अपने तेज से वसुधा का आधिपत्य प्राप्त कर प्रतिष्ठित जैसे हुए।" जगदेव के डोंगरगांव अभिलेख (कं.४२) के श्लोक ५ में निम्नलिखित उल्लेख है
ततो स्कन्दैर्मग्नां माल मेदिनीम]
उद्धरन्नुदयादित्यस्तस्य भ्राता व्यवर्द्धत ।।५।।। "उस (भोज देव) के पश्चात् उसका भाई उदयादित्य वृद्धि को प्राप्त हुआ, जिसने मालव भूमि का उद्धार किया, जो तीन शत्रुओं के आक्रमण से (धूली में) मग्न हो गई थी।"
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