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________________ o परमार अभिलेख ४४. जो शिव मंदिर का निर्माण शृंगों अथवा मणियों से करता है वह . . . . . .। ४५. राजा श्री जयसिंहदेव के द्वारा इस शिवजी के (मंदिर) के लिये भक्ति से इस मार्ग से जाने वाले प्रत्येक वृषभ पर एक वंशोपक प्रदान करने का (निश्चय किया गया)। पांसुला खेटक स्थान में शिवजी के लिये भक्ति से दूसरा (दान) दिया.....। श्री मण्डलीक ने अपने कल्याण के लिये वन्दन नामक घाट पर दो भाग भूमि इसी प्रकार दान में दी। नग्न तडाग व वरुणेश्वरी के पीछे सुन्दर वाटिका दी. . . . . .। इसी प्रकार सांसारिक फल को जान कर चन्द्र व सूर्य के रहते तक खेत सहित भूमि प्रदान की. . . . . .। ५०. नढ्ढापाटक ग्राम में, देउलपाटक में, भोग्यपुर में, पानाछ्य में और मण्डलद्रह में... ५१. इस प्रकार इन ग्रामों में निशित भूमि श्री मण्डलीक ने मंडलेश्वर में दान में दी। ५२. श्री मण्डलीक के द्वारा स्त्रियों के पांवों के पायजेबों की झंकार से मुखरित यह नगर शिवजी के भोग के हेतु दान किया गया। ५३. इस नगर में शुद्ध द्रव्य व भूमि एवं घाट आदि का. . . . . . दान किया। ५४. तपस्वी, ब्रह्मचारी, पवित्र, उदार व जितेंद्रिय जो भी हो वे तीर्थयात्रियों के साथ यहां सदा तपश्चर्या करें। ५५. भरत, धुंधुभार, कार्तवीर्य, शिवि, बलि, हरिश्चन्द्र, मान्धाता, नल, वेणु आदि नरेश भी. . . . ५६. ... . . वे भी आयु के समाप्त होने पर यमपुरी को चले गये। ५७. यह सारा राज्य, आयुष और धन अस्थिर हैं, यह जान कर नरेशों को शिव से संबंधित छोटी से छोटी वस्तु को भी लुप्त नहीं करना चाहिये। कारण कि शिवजी के तीर्थ, जप और ज्ञान से जो कुछ अंजली में स्थित है, . . . . . ऐरावत . . . . . और विशेषतः हमारे वंश में अथवा विषय (प्रदेश) में जो उपभोग करने वाला हो, उससे हमारी प्रार्थना है कि शिव हेतु जो दिया गया है उसका अपहरण न करें। शत्रुसमूहों के मुकुटों से स्पर्श की जा रही है पादपीठ की शोभा जिसकी, धनुर्धारी चतुर्भुज (राम के समान पराक्रमी श्री मंडलीक ?) ने स्पष्ट वर्णरचना, चातुर्य भरे शब्दाडम्बरों से (परिपूर्ण) देख कर विद्वज्जनों को ज्ञान प्रदान करने वाली यह प्रशस्ति शिव मंदिर में उत्कीर्ण करवाई। ६१. जब तक कूटमंडप में चन्द्रमा की कला प्रकाशमान है, तब तक श्री मंडलीक की कीर्ति पृथ्वी पर अक्षय रहे। विक्रम संवत् १११६. . . . . . वलभी के कायस्थ श्री धर के पुत्र आसराज के द्वारा यह उत्कीर्ण की गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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