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पाणाहेड़ा अभिलेख
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२७. श्री महाकाल देव (के मंदिर) के समीप बर्फ के समान शुभ्रकीर्ति श्री धनेश्वर नाम से
अधिकता से शोभायमान है। (संभवतः उसने एक श्वेत भवन बनवाया) . २८. उसके पश्चात उसके भाई का पुत्र चच्च नामक नरेश हुआ। युद्ध में......।
. . . . . इस नाम से प्रसिद्ध तलवार के आघातों से जिसने शत्रुगजों के गण्डस्थलों का विदारण कर दिया है, जो सीयक के लिये खोटिगदेव से युद्ध करते हुए नर्मदा के किनारे खलघाट के तट पर दिवंगत हुआ।
. . . . . .निवास करते हुए। ३१. कीतिरुपि नदी से त्रैलोक्य की सीमा को व्याप्त कर लिया है ऐसा त्यागी, सत्य
पराक्रम वाला, गुण का भण्डार श्री सत्यराज हुआ जिसने गुर्जरों के साथ युद्ध करके श्री
भोज नरेश से वैभव प्राप्त किया . . . . . .। ३२. जिसकी मति सहज में ही श्रीमन्ततापूर्ण थी, जिसकी उपमान वह देवकी है, जिसका स्तन
पान आदिपुरुष (कृष्ण) ने किया, श्रेष्ठ चाहमान वंश में उत्पन्न हुई राजश्री जिस
(सत्यराज) ने प्राप्त की. . . . . . । ३३. उससे प्रसिद्ध श्री लिम्बराज (उत्पन्न हुआ) जो अच्छे अच्छे वीर योद्धाओं के निर्माण
करने में ब्रह्मदेव के समान, ऐश्वर्य कम होने पर भी अत्याधिक दानशील, नीति व विनम्रता में महापंडित, श्रेष्ठ, कलियुग के शत्रु नरेशों का छलपूर्वक विनाश करके. . . . . . .
स्वर्ग को प्राप्त हुआ। ३४. भोग त्याग को स्वीकार कर . . . . . . उसका छोटा भाई श्री मंडलीक नामक नरेश हुआ।
वह मण्डलीक पृथ्वी पर शोभायमान हो रहा है जो शूर, त्यागी, रसिक, विद्वान, कामदेव के समान सुन्दर, कामिनियों के चित्त को हरण करने वाला, सामन्तों के मस्तकों पर
चरण स्थापित करने वाला है। ३६. और भी। भोज...... ३७. जिसने रण में महाबलि कण्ह नामक सेनापति को, उसके अश्वों व गजों समेत, पकड़ कर
जयसिंह को समर्पित कर दिया। ३८. इस परमार वंश की जय हो, जिसमें प्रभु (नरेश) श्री जयसिंह देव उत्पन्न हुआ। जिस
वंश की शाखाओं में उच्च सामन्तों द्वारा पूजित...... .....पांशुला खेटक में भक्तिपूर्वक शिव मंदिर का निर्माण कराया, दीपोत्सव में जिसके उन्नत शिखरों पर स्थापित दीपकों के काजल को सिद्ध-स्त्रियां अपने नयनों में लगाती थीं। जो मुट्ठीभर तृण लेकर समर्पण करता है. . . . . वह भी पृथ्वी पर जन्म लेकर नरेश हो जाता है। जो निर्धन व्यक्ति एक दिन भी बांस, लकड़ी अथवा मिट्टी का शिव मंदिर बनाता है, वह स्वर्ग में हजारों वर्ष शिव की उपासना करके फिर से यहां पर राजा बनता है। महान . . . . . . . . . इन्द्र पद की कामना करने वाले देवाधिपति को भी तुरन्त नीचे गिरा देता है। यदि पक्की ईंटों, वृक्षों व दृढ़ शिलाओं से देवमंदिरों का निर्माण करता है, वह कमलों पर चलता हुआ स्वर्ग में निवास करता है।
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