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________________ १०० १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. परमार अभिलेख जिसके शौर्य के आगे ...... . गर्वपूर्वक वचन को सहन करने में कौन समर्थ हो सकता है । पराक्रम की प्रतिस्पर्धा में वे भले ही गर्व किया करें जिन्होंने अपने मुख पर जिसकी कीर्ति से त्रस्त की गई हुई कालिमा धारण की हुई है व जिनके केवल कबंध (धड़) ही शेष हैं। जिसके भुजदण्ड से खींचे हुए धनुष की डोरी टंकार से तत्काल शत्रुओं की वाणी लड़खड़ाने लग गई व घर में जिस स्थिति में थे उस कार्य को छोड़ कर भय के कारण पैरों को शरीर में सिकोड़ कर बैठ गये । उससे कमलपत्र के समान नेत्रों वाला विद्या की निधि उग्र कृपाण के दण्ड को उन्मत्त गज-घटा चलाने की चतुराई में निपुण हैं भुजायें जिसकी ऐसा नरेंद्र उत्पन्न हुआ । आकाश के समान नीलवर्ण जिसकी सेनायें जब चलने लगी तो उसके भार को सहन करने में असमर्थ पृथ्वी के भार को वहन करने की इच्छा रखने वाला .. . अनेक प्रयत्न करता हुआ मर्मव्यथाओं से शेषनाग प्राणों के शेष रहने से निश्चल हो गया । उसकी विजय यात्रा के लिये चलने पर बलवान हाथी एवं घोड़ों की सेनाओं से क्षुब्ध एवं क्षीण हो गया है प्रवह जिनका कमलवनों के कुचलने से हंस उड़ गये हैं ऐसी.. . शत्रुओं की स्त्रियों के आशुओं के बहाव से मरुस्थल के कुवें भी घोड़ों के चाटने योग्य हो गये । जिसका प्रताप रूपी मेघ विद्यारूपी बिजली की चमक से अपने रुप को दिखाते हुए प्रजा में दान रूपी वर्षा करने लगा । शत्रु के सिरों पर प्रहार की गई हुई खड्ग उसके बाद जयसिंह नामक नरेश हुआ जिसके चरण प्रणाम करने वाले नरेशों की मुकुट मणियों से पूजित हुआ करते थे, जिसने अपनी यात्रा के समय चंचल घोड़ों एवं सेना की धूलि से चारों समुद्रों के जल को मलिन कर दिया था । जिसके बाहु में पराक्रम वेग से देवांगणानाओं के द्वारा इस पर पुष्पवृष्टि की गई । सरलता से सींचे गये हुए खड्गों से मारे गये हुए शत्रु योद्धागणों के स्कंध एवं कण्ठ की अस्थियों से बहने वाली रक्तधाराओं से सिंचित समरभूमि पर नृत्य कर रहे हैं कबंध जिसमें .. इन (शत्रुओं) के गजसमूहों ने गंडस्थल की खुजलाहट के मिटाने के लिये घर्षण करने से बड़े बड़े वृक्षों को भग्न कर दिया है..... वे केवल संग्राम की शोभामात्र रह गये, उस ( जयसिंह) के भुजदण्ड के घुमाने से उग्र खड्गधारारुपी जल में वे गज तत्काल डूब जाते थे । युद्ध में जिसके शत्रुगण यम की जिव्हा के समान खड्ग को देखकर आयु की मर्यादा प्राप्त न होने पर भी. . प्राणों को छोड़ते हैं । . विचित्र कि सारे नरेश उसकी मुट्ठी के मध्य में रहते हैं । यहां विस्तृत परमार वंश में ( अर्थात शाखा में ) श्री धनिक नामक नरेश हुआ जो त्याग करने में कुबेर के समान कल्पवृक्ष के समान था..... . अपने शरीर को पहुंचाया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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