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उदयपुर अभिलेख
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(२१) उदयपुर का ज्ञातपुत्र उदयादित्य का नीलकंठेश्वर मंदिर प्रस्तर अभिलेख
(विक्रम सं. १११६, शक संवत् ९८१=१०५९ ईस्वी) प्रस्तुत अभिलेख का पाठ अत्यन्त अशुद्ध एवं संदिग्ध है। यह विदिशा जिले में उदयपुर में नीलकंठेश्वर मंदिर में दीवार में लगे एक प्रस्तर शिला पर उत्कीर्ण है। इसका उल्लेख ज. ए. सो. बं., भाग ७, पृष्ठ १०५६ तथा भाग ९, १८४० , पृष्ठ ५४५--५४८ पर किया गया। परन्तु वहां इसका फोटो न हो कर पाठ की हस्तप्रतिलिपि ही छपी है।
___ अभिलेख का आकार ९४४५५ सें. मी. है। इसमें २२ पंक्तियां उत्कीर्ण हैं । प्रत्येक पंक्ति में ६५ से ७५ तक अक्षर हैं। अंतिम पंक्ति के अक्षर २.५ सें. मी. है।
भाषा संस्कृत है, परन्तु अत्यन्त त्रुटिपूर्ण है । यहां तक कि उसका ठीक से अर्थ लगाना भी कठिन है । अनुमानतः अभिलेख गद्य--पद्यमय है। यह कहना सरल नहीं है कि इसका कितना भाग श्लोकबद्ध है। संभवत: पंक्ति १-२ में एक श्लोक स्रग्धरा छन्द में है। इसी प्रकार पंक्ति २-३ में भी श्लोक है। तीसरा श्लोक संभवतः पंक्ति ३-४ में है, परन्तु यह अपूर्ण लगता है । आगे के श्लोकों के बारे में कुछ भी निश्चित करना सरल नहीं है। वैसे पंक्ति १३ में दण्डों के मध्य १ का अंक दो बार है । पंक्ति १४ में २० का अंक है। इसी प्रकार पंक्ति १६ में दण्डों के मध्य २४ का अंक, पंक्ति १७ में दण्डों के मध्य २३ अंक, पंक्ति १८ में दण्डों के मध्य २७ अंक, पंक्ति २० में ३० व ३१ अंक और पंक्ति क्र. २१ में दण्डों के मध्य ३२, ३३ व ३४ अंक हैं । यह कहना सरल नहीं कि इन अंकों का वास्तव में क्या प्रयोजन है। संभव है कि ये अंक श्लोकों के क्रमांक रहे हों । यदि ऐसा है तो मानना होगा कि अभिलेख कुल ३४ श्लोकों का है। परन्तु सभी श्लोकों को ठीक से जमाना संभव नहीं है।
__ व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से केवल इतना कहना ही पर्याप्त है कि अभिलेख अत्यन्त त्रुटिपूर्ण है। इसमें कठिनाई से ही कोई वाक्य शुद्ध है। अशुद्धियों के लिये लेखक व उत्कीर्णकर्ता दोनों ही उत्तरदायी हैं।
अभिलेख में तिथियों की भरमार है। इनमें एक विशिष्टता यह है कि प्रारम्भिक तिथियां शब्दों व अंकों दोनों में रखी हुई हैं। इसके अतिरिक्त प्रायः सभी में सम्बद्व संवतों का नाम भी दिया हुआ है । पंक्ति क्र. ६ में तिथि विक्रम संवत् १११६ और शक संवत् ९८१ दी हुई हैं। गणना करने पर ये दोनों १०५९ ईस्वी की बराबर निश्चित होती हैं । पंक्ति १३-१५ में भी कुछ तिथियों का उल्लेख है। पंक्ति १३ में तिथियां केवल शब्दों में लिखी हुई हैं। जिनको ठीक से पढ़ने में कठिनाई है । इसी प्रकार पंक्ति १४ में प्रारम्भ में कोई तिथि शब्दों में है जिसको पढ़ने में कठिनाई है। परन्तु दूसरी तिथि अंकों में लिखी हुई है जो कलियुग का ४१६० वर्ष है । इस समय कलियुग का चालू वर्ष ५०७९ है। इसमें से ईस्वी सन् का चालू वर्ष निकाल देने पर कलियुग का प्रारम्भ ३१०१ ईस्वीपूर्व निश्चित हो जाता है। इससे गणना करने पर कलियुग ४१६० वर्ष सन् १०५९ ईस्वी के बराबर बैठता है जो उपर्युक्त गणना से मेल खाता है। आगे पंक्ति १५ में पुनः किसी युग संवत्सर के ४३३९ वर्ष का उल्लेख है जिसके बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। आगे भी कुछ अन्य
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