________________
°
२३.
२४.
२५.
२६.
२७.
२८.
यानीय (ह) दत्तानि पुरा नरेन्द्रद्दत्ता (ना) -
fa धर्मार्थ - यशस्कराणि । निर्माल्य वान्ति- प्रतिमानि तानि को नाम साधुः पुनराददीत || [ ६ || ] अस्मत्कुलक्रममुदार-मुदाहरद्भिर [न्यै] श्च दानमिदमभ्यनुमोदनीयं ।
लक्ष्म्यास्तडित्स
९.
लिल बुद्ध (बुद्ध) द चंचलाया दानं फलं परयशः परिपालनं च । । [ ७ ।।] सर्व्वानेतान्भाविनः पार्थिवे
न्दान्भूयो भूयो याचते रामभद्रः । सामन्योयं धर्म्मसेतुर्नृपाणां काले काले पाल
नीयो भवद्भिः || []
इति कमलदलम्वु (म्बु) विन्दुलोलां श्रियमनुचिन्त्य मनुष्यजी
Jain Education International
परमार अभिलेख
इति
२९. संम्व ( संव) त् १११२ आषाढ़ वदि १३ । स्वयमाज्ञा । मङ्गलंमहाश्रीः । स्वहस्तोयं ३०. श्रीजयसिङ्घ (ह) देवस्य ।
वितं च । सकलमिदमुदाहृतं च वृद्धा (बुद्ध वा ) न हि पुरुषः परकीर्त्तयो विलोप्या ।। [९ ।।]
अनुवाद ( प्रथम ताम्रपत्र )
१. ओं
जो संसार के बीज के समान चन्द्र की कला को संसार की उत्पत्ति के हेतु मस्तक पर धारण करते हैं, मेघमण्डल ही जिनके केश हैं, ऐसे महादेव सर्वश्रेष्ठ हैं ||१||
प्रलयकाल में चमकने वाली विद्युत् की आभा जैसी पीली, कामदेव के शत्रु, शिव की जटायें तुम्हारा कल्याण करें ॥२॥
३. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री वाक्पतिराजदेव के
४. पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री सिंधुराजदेव के पादानुध्यायी ५. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री भोजदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक ६. महाराजाधिराज परमेश्वर श्री जयसिंहदेव कुशलयुक्त हो पूर्णपथक मण्डल में मक्तुला ग्राम ७. बयालीस के अन्तर्गत भीमग्राम में आये हुए सभी राजपुरुषों, श्रेष्ठ ब्राह्मणों, आसपास के निवासियों, पटेलों व ग्रामीणों को आज्ञा देते हैं-- आप को विदित हो कि श्रीयुक्त धारा में स्थित हमारे द्वारा स्नान कर चर व अचर के स्वामी भगवान भवानीपति की विधिपूर्वक अर्चना कर संसार की असारता को देख कर -
८.
इस पृथ्वी का आधिपत्य वायु में बिखरने वाले बादलों के समान चंचल है, विषय भोग प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाले हैं, मानवप्राण तिनके के अग्रभाग पर रहने वाले जलबिन्दु के समान हैं, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा होता है || ३ ||
घूमते हुए संसार रूपी चक्र की धारा ही जिस का आधार है, भ्रमणशील ऐसी लक्ष्मी को पाकर जो दान नहीं करते उनको पश्चात्ताप के अतिरिक्त कुछ फल नहीं मिलता || ४ || १२. इस जगत का नाशवान
१३. रूप समझ कर ऊपर लिखा यह ग्राम अपनी सीमा तृण गोचर भूमि तक साथ में हिरण्य
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org