________________
कालवन अभिलेख
७९
महापर्वत के ऊँचे शिखर के समान कहा है। सीयकदेव के युद्धों में विजय प्राप्त करने व कीर्तिफैलने का वर्णन है। वाक्पतिराजदेव के काव्यानुराग व शत्रुओं को अधीन करने का वर्णन है। इसी प्रकार सिंधुराजदेव की प्रशंसा है। यहां भोजदेव की विजयों का निश्चित वर्णन है। उसके कर्णाट, लाट, गुर्जर, चेदि नरेश, कोंकण अधिपति आदि पर विजय प्राप्त करने का उल्लेख है। उत्तरकालीन उदयादित्य की उदयपुर प्रशस्ति (क्रमांक २२) में भी भोजदेव की इन विजयों का वर्णन है। प्रस्तुत अभिलेख में सर्वप्रथम इन नरेशों के वंश का नाम है। परन्तु यहां सामान्य प्रशंसा है, उसकी उत्पत्ति का वर्णन नहीं है, जो बाद के अभिलेखों में मिलता है। एक नया तथ्य यह भी है कि परमार वंश का संबंध धारा नगरी से स्थापित है।
पंक्ति ८ में भोजदेव के एक सामन्त यशोवर्मन का उल्लेख है जो आधे सेल्लुक नगर के साथ १५०० ग्रामों का भोग कर रहा था । पंक्ति क्र. ९ के अनुसार इस सामन्त के आधीन
औद्रहादि विषय में ८४ ग्राम कर-मुक्त थे जिनमें एक ग्राम मुक्तापली था। इस विषय का मुख्य अधिकारी गंगवंशीय अम्मराणक था। अगली पंक्तियों में दान के अवसर का उल्लेख है। इसके अनुसार इस अम्मराणक ने चालुक्यवंश में, उत्पन्न अपनी पत्नी समेत श्वेताम्बर आचार्य श्री अम्मदेव के मुख से विख्यात धर्म व अधर्म संबंधी आगम-वाक्य सुन कर व अन्य धर्म की अपेक्षा मुख्य जिनधर्म परलोक शुभ फल देने वाला है, ऐसा सोच कर महिषबुद्धि क्षेत्र में कलकलेश्वर पुण्य तीर्थ में इस चैत्रमास की अमावस्या पर सूर्यग्रहण के अवसर पर दान दिया। यहां दानकर्ता द्वारा अपने वंश के साथ अपनी पत्नी के वंश का उल्लेख संभवतः इसके महत्त्व को प्रदर्शित करना ही है।
पंक्ति क्र. १७-२४ में दान का विवरण इस प्रकार है :सपत्नीक अम्मराणक द्वारा मुक्तापली के उत्तर से माहुडला ग्राम की उत्तर दिशा में ४० निवर्तन भूमि जिसके पूर्व में 'नदी, दक्षिण में हथावाड ग्राम, पश्चिम में कांकडा खाई, उत्तर में पर्वत, इस प्रकार चारों ओर से घिरी विशुद्ध भूमि (पंक्ति क्र. १७-१९); डोंगरिका कुमारीस्तन के दोनों तटों पर श्री कक्कपैराज द्वारा दी गई २५ निवर्तन भूमि (पंक्ति क्र. २०); वकाइगल आदि नागरिकों द्वारा संगाम नगर की सीमा के पास चडलीवट में ३५ निवर्तन
भूमि (पंक्ति २१-२२); ४. पुष्पवाटिका की २ निवर्तन भूमि, ५. दो तेल घाणी, १४ व्यापारिक दुकानें, १४ द्रम्म (सिक्के) व १४ छत्र दिये गये (पंक्ति
२२-२४); ६. और दुकानों में, गलियों में प्रतिपत्र पचास (?), सभी टूटे हुओं का जीर्णोद्धार किया गया
(पंक्ति २४)।
पंक्ति क्र. २६-२८ विशेष महत्त्वपूर्ण है। इनमें दान की घोषणा से संबंधित उपरोक्त विषय के राज्य अधिकारियों की सूची है जो पूर्ववणित अभिलेखों से भिन्न है। इसमें वीसि, देशलिक, ग्रामटक, गोकुलिक, चौरिक, शौल्किक, दण्डपाशिक, प्रातिराज्यिक, महत्तम और कुटुम्बिक के उल्लेख हैं। अंतिम पंक्ति क्र. ४४-४५ में अभिलेख के लेखक का नाम है जो ब्राह्मण वंश में उत्पन्न सांधिविग्रहिक श्री जोगेश्वर था।
ऐतिहासिक दृष्टि से प्रस्तुत अभिलेख का बहुत महत्त्व है। अभी तक प्राप्त अभिलेखों में भोजकालीन यह अंतिम अभिलेख है। यद्यपि इसमें तिथि का अभाव है, तिस पर भी यह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org