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भोजपुर अभिलेख
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(१७) भोजपुर का भोजदेव कालीन प्रस्तर जैन प्रतिमा अभिलेख
(तिथि रहित) प्रस्तुत अभिलेख मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में भोजपुर नामक ग्राम में एक पुराने मंदिर में जैन तीर्थंकर की पत्थर की एक विशाल मूर्ति की पादपीठिका पर खुदा है। इसका प्रथम उल्लेख इंडियन आकियालाजी, ए रिव्यू, १९५९-६०, क्रमांक २६, पृष्ठ ५७ पर किया गया। डी. सी. सरकार ने एपि. इं., भाग ३५, पृष्ठ १८५ पर इसका विवरण छापा। इससे पूर्व मुनि कांतिसागर ने अपने ग्रन्थ “भोजपुर के प्राचीन स्मारक" में इसका उल्लेख किया।
अभिलेख दो पंक्तियों का है। प्रथम पंक्ति ५३.३० सें. मी. व दूसरी ३८ सें. मी. लम्बी है। प्रथम पंक्ति के अक्षर बड़े व दूसरी पंक्ति के छोटे हैं। अक्षर प्रायः टूट गये हैं। अक्षरों की बनावट ११वीं सदी की नागरी लिपि है। भाषा संस्कृत है व पद्य में है। इनमें दो श्लोक हैं। तिथि नहीं है। परन्तु अन्यथा यह ११वीं सदी का होना चाहिये।
प्रथम पंक्ति में वसन्ततिलका छन्द में एक श्लोक है। इसके पूर्वार्द्ध में चन्द्रार्द्धमौली शिव व उत्तरार्द्ध में राजाधिराज परमेश्वर भोजदेव के उल्लेख हैं। संभव है कि शासनकर्ता नरेश व उसके आराध्यदेव का परिचय 'जयति' के समान किसी शब्द से किया गया हो, परन्तु श्लोक के विस्तृत भाग में कोई क्रिया दिखाई नहीं देती है। अभिलेख के प्राप्तिस्थल व लिपि के आधार पर यह परमार राजवंशीय भोजदेव ही है।
दूसरी पंक्ति में अन्य श्लोक उपजाति छन्द में हैं। इसके पूर्वार्द्ध में सागरनन्दि पढ़ा जाता है, शेष भाग टूट गया है। उत्तरार्द्ध में नेमिचन्द्र.....सूरि व शांतिजिन के उल्लेख हैं। परन्तु वाक्य रचना त्रुटिपूर्ण लगती है। फिर भी यह निश्चित है कि प्रमुख उद्देश्य जिन भगवान शांतिनाथ की उस प्रतिमा की स्थापना करना था जिसकी पादपीठिका पर अभिलेख उत्कीर्ण है। प्रतिमा की स्थापना करवाने वाला व्यक्ति सागरनन्दि नामक जैन गृहस्थ था। मूर्ति की प्रतिष्ठापना का विधिविधान जैन आचार्य नेमिचन्द्र सूरि द्वारा सम्पन्न किया गया था।
यह एक जैन अभिलेख है, परन्तु प्रथम श्लोक में भगवान शिव की स्तुति होने से इसका रचयिता शैव मतावलम्बी हो सकता है। शिवस्तुति नरेश भोजदेव के कारण है, जो शिव आराधक था।
अभिलेख का महत्त्व अत्याधिक है। यह परमार नरेश भोजदेव को भोजपुर से संबद्ध करता है। अतः यह प्रमाणित होता है कि भोजपुर नाम इसी नरेश के नाम पर पड़ा था।
मूलपाठ १. '- -८-८८८- -८ [कारे चौद्ध मौलि रसमः सम ----
--~-~~- मद्भुत की[त्ति]- -२ - - -3 राज परमेश्वर भोजदेवः ।।[१।।] २. ------ -- ----८र: सा[ग] रनन्दि नामा।
स ने[मि]चन्द]रो विदधे प्रतिष्ठां सुदुर्लभः साति जिनस्य मुरि ॥२॥] १. यहां संभवतः सिद्धं चिन्ह रहा होगा। २. संभवतः 'राशि'। ३. संभवतः 'राजाधि' । ४. संभवत: 'शांति' ५. 'सूरि'
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