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________________ ७६ परमार अभिलेख ऐसा करते हुए व क्षीण हो रहे देवताओं के अग्रभाग में (स्थित ) होने से वह सुरादित्य नाम को शोभायमान कर रहा था ॥५ उसका पुत्र श्री जसोराज, जो संगमखेट मंडल का उपभोग करता था, सदा धर्मी था, अपनी धार्मिकता के कारण बहुत अधिक विख्यात हुआ ।।६।। अमात्यपुत्रों और प्रधान देशवासियों को बुला कर "आप को (हमारे) पराक्रम विदित हैं" कह कर अनुमति की प्रार्थना की ।।७।। उनके द्वारा सम्मति मिलने पर स्वधर्म के अनुसार श्रीयुक्त नर्मदातट पर जा कर विक्रमादित्य संवत् ग्यारह सौ ।।८।। तीन वर्ष के मार्ग (शीर्ष) मास में सोमवार को सोमपर्व पर स्नान कर गुरु की स्वीकृति से देव की अर्चना आदि कर के ।।९।। मणा नदी के रमणीक संगम पर स्थित मणेश्वर के शिवालय में दक्षिण को (मुख किये) शिवमूर्ति की ओर जल हाथ में ले कर ॥१०॥ (प्रथम ताम्रपत्र--पृष्ठभाग) श्री घण्टेश्वर देव के लिये विलुहज ग्राम तथा घण्टपल्ली ग्राम में सुशोभित सौ(अंश) भूमि दान में दी ॥११॥ चारों घाटों से युक्त यह स्थाई दान सभी के उपकार के लिये व स्वयं के पापक्षय के हेतु दिया है ।।१२।। वहां दानजल ग्रहण करने वाले महाव्रती मुनि दिनकर (नामक हैं) जो साक्षात् नरमुंड धारण करने वाले शंकर ही हैं।।१३।। मेरे द्वारा दिया गया यह दान शिवधर्म पालन की व इस जन्म में कल्याण की इच्छा करने वाले श्रेष्ठ व्यक्तियों को पालना चाहिये ।।१४।। सभी उन होने वाले नरेशों से रामभद्र बार बार याचना करते हैं कि यह सभी नरेशों के लिये समान रूप धर्म का सेतु है, अतः अपने अपने काल में आप को इसका पालन करना चाहिये ।।१५॥ सगर आदि अनेक नरेशों ने वसुधा भोगी है और जब जब यह पृथ्वी जिसके अधिकार में रही है तब तब उसी को उसका फल मिला है ।।१६।। (दूसरा ताम्रपत्र--अग्रभाग) भूमि का दान देने वाला साठ हजार वर्षों तक स्वर्ग भोगता है। इसको छीनने वाले व छीनने की स्वीकृति देने वाले, सभी उतने ही वर्षों के लिये नरक के भागी होते हैं ॥१७॥ एक स्वर्ण (मुद्रा), एक गाय, एक अंगुल भूमि का हरण करने वाला प्रलय काल तक नरक में वास करेगा ।।१८।। भूमि का हरण करने वाले व्यक्ति विंध्य की अटवियों में सूखे वृक्षों के छिद्रों में रहने वाले कृष्ण सर्प निश्चय रूप से बनते हैं ।।१९।। वाल वंश में उत्पन्न ऐवल पुत्र कायस्थ सोहिक ने यह राजपत्र राजा की आज्ञा से रचा ।।२०।। इस शासन पत्र में अज्ञानवश जो भी कम या अधिक लिखा गया है उसको नमस्कार ही करना चाहिये क्योंकि सज्जन सब सहन करते हैं ।।२१।। . मंगल व श्रीवृद्धि हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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