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तिलकवाड़ा अभिलेख
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हरन्नरकमायाति
दकग्राहक : तत्रमहाव्रत धरो मुनि । दिनकरो नाम यः साक्षा
____ कपालीव सं (शं) करः ॥१३॥ एतदत्तं मया दानं पालनीयं नरोत्तमैः ।। सि (शि)वस्य धर्ममिच्छद्भिः कल्याणमिहजन्मनि ।।[१४।।] सामान्योयं
धर्मसेतुः नृपाणां काले काले पालनीयो भवद्भिः । सर्वा
नेतान्भाविन पार्थिवेंद्रान् भूयो भूयो याचते रामभद्रः ।।[१५।।] ब (ब) हुभिर्वसुधा भुक्ता राजानः (जभिः) सगरादिभिः । यस्य यस्य
____ यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं (लम्) ॥१६॥] षष्टिः वर्षसहश्राणि(द्वितीय ताम्रपत्र--अग्रभाग)
-स्वर्गे तिष्टति भूमिदः । आच्छेता (त्ता) चानुमंता च तान्ये (तावे)व नरक वसेत् ।।[१७।। स्वर्णमेकं गवामेकां भूमेरप्येकमंगुलं (लम्) ।
संप्लवं (वम् ) ॥[१८] विध्याटवीष्वतोयासु सु (शु)ष्ककोटरवासिनः। कृष्णसभिजायन्ते
भूमिहर्ता नराश्च ये ॥[१९॥] बालस्यान्वय-संभूत-कायस्थ-ऐवलात्मजः सा (शा)सनं
___ सोहिको नाम राज्ञाभ्यर्थ (न)याकरोत् ॥[२०॥] उनातिरिक्तमज्ञानाल्लिखितं सा (शा)सनेत्र यत् । प्राणाम
मेव कर्तव्यं संतः सर्वसहायतः ।।[२१॥ मंगलमहाश्रीः ॥
अनुवाद (प्रथम ताम्रपत्र--अग्रभाग) जिनका अन्त करना कठिन है ऐसे शत्रुओं ने जिसकी अचल मित्रता प्राप्त कर ली ॥१।।
उससे श्री भोजदेव उत्पन्न हुआ, पृथ्वी पर जिसका कीर्तिपुंज विख्यात था। वह शत्रुओं को दण्ड देने वाला था। उसकी प्रतापरूपी अग्निज्वाला ने शत्रुओं के वक्षस्थल को जला दिया। उसने चिरकाल तक बिना रुकावट के राज्य किया।।२।।
उसके चरण-कमलों का ध्यान करने वाला कान्यकुब्ज में विख्यात श्रवणभद्र वंश में पुरुष श्रेष्ठ सुरादित्य हुआ ।।३।।
उसने साहवाहन व अन्य नरेशों के साथ (युद्ध में) योद्धाओं को मार कर भोजदेव की (राज) लक्ष्मी को स्थिरता प्रदान की ।।४।।
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