________________
परमार अभिलेख
(उ) बाबू शास्त्री भट्ट, धार द्वारा पाठ--
श्रीमद्भोजनरेंद्रचंद्र नगरी विद्याधरी मूर्तिमत् योधा नामर सुंदरा खलु सुखं प्रस्थाप्यतां चाप्सरा: वाग्देवी प्रथम विधाय (विभाग) जननी यस्याजितानात्रेयी
यस्यचित्सुफलाधिका वररूचि मूर्ति शुभां निर्मये। (उपरोक्त लेख से उद्धृत) (ऊ) एच. आर. दिवेकर का पाठ जो १३-१०-१९७० को उन्होंने ए. डब्ल्यू. वाकणकर, धार के पास अभिलेख के फोटोग्राफ से पढा
ओं। श्रीमद्भोजनरेंद्रचंद्रनगरी विद्याधरी संसुधीः सौख्यायामर संसदः खलु पुरस्याराधनः याप्सराः वाग्देवीं प्रथमं विधाय जननीं यस्यां जिता वा त्रयी यस्यो वागम संविदां वररूचिमूर्ति शुभां निर्ममे।
(ए. डब्ल्यू. वाकणकर, धार से प्राप्त) (ए) वी. एस. वाकणकर, उज्जैन का दूसरा पाठ जो उन्होंने पेंसिल रबिंग के आधार पर तैयार
किया।
वी. एस. वाकणकर ने इस बारे में अपने लेख में लिखा है कि विद्याधरी के आगे म्मूर्तिः स्पष्ट है किन्तु यो या नाम के आगे अक्षर अस्पष्ट से हैं। रणं स्पष्ट है, पदं भी स्पष्ट है। वाग्देवी के आगे प्रथम विधाय स्पष्ट है। प्रथम के स्थान पर दीक्षित व लेले का वाचन प्रतिमा है पर वह ठीक नहीं है, क्योंकि ति न होकर वह थ है तथा मा न हो कर म है। अत: प्रतिमा न होकर प्रथम ही ठीक है। भ और ध का अन्तर करना ठीक न होगा क्योंकि ध स्पष्टतया अंकित है । वे आगे लिखते हैं कि उनके वाचन में संस्कृत की दृष्टि से दोष हैं । अतः यह समस्या अभी भी शेष ही है।
मूल पाठ (संशोधित) १. ओं।
श्रीमद् भोजनरेंद्रचंद्र नगरी विद्याधरीम्मूर्तिः यो या नाम स्मरणं पदं खलु सुखं प्रस्थाप्यता
याप्सराः। वाग्देवी प्रथम विधाय जननीमस्याजिता नामवयी मस्यचित्सु फलाधिका वररुचिन्मूर्ति शुभां
निर्ममे ।। [१] ___इति शुभं । सूत्रधार साहिरसुत मणथलेन धटितं । विटिका सि (शि) वदेवेन लिखितमिति । ४. संवत् १०९१ ।
अनुवाद १. ओं। ___ श्रीमान भोजनरेन्द्रचन्द्र की नगरी में जो मूर्तिमति विद्याधरी देवी की मूर्ति है, जिसके नामस्मरण से ही निश्चित रूप से सुख प्राप्त होता है, इसकी स्थापना करके जिसने प्रथम बार मां वाग्देवी का निर्माण करके तीनों लोकों में नाम कमाया, जिसका पूजन करने से मनोरथ पूर्ण
होते हैं, यह शुभ सुन्दर मूर्ति निर्मित की ।।१।। ३. शुभ हो । सूत्रधार साहिर के पुत्र मनथल के द्वारा घड़ी गई । पंक्तियां शिवदेव द्वारा लिखी गई। ४. संवत् १०९१ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org