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________________ परमार अभिलेख ( द्वितीय ताम्रपत्र) १७. गः सोपरिकरः सादायसमेतः वा (ब्रा)ह्मण-धनपतिभट्टाय भट्टगोविन्दसुताय व (ब)१८. हवृचाश्वलायनशाखाय। अगस्तिगोत्राय। त्रिप्रवराय। वेल्लुवल्लप्रतिव (ब)द्ध-श्रीवादावि निर्गतरा१९. धसुरसंगकर्णाटाय। मातापित्रोरात्मनश्च पुन्य (ण्य ) यशोभिवृद्धये । अदृष्टफलमंगीकृत्य च२०. द्राार्णवक्षिति-समकालं यावत्परया भक्त्या शाश (स) नेनोदकपूर्व प्रतिपादित इति मत्वा २१. यथादीयमान-भागभोगकर-हिरण्यादिकमाज्ञा-श्रवणविधेयर्भूत्वा सर्वमस्मै सम्पनेतव्यं । २२. सामान्यं चैतत्पुण्यफलम्वुध्वा (बुवा)स्मद्वन्स (द्वंश )जैरन्यैरपि भाविभोक्तृमिरस्मत्प्रदत्त .... धर्मा (म) दायोऽय- . २३. मनुमन्तव्यः पालनीयश्च । उक्तं च । व (ब)हुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिस्सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं (लम्) ।।५।। यानहि दत्तानि पुरा नरेन्द्रनानि धर्मार्थयशस्कराणि । निर्माल्य वान्ति (न्त) प्रतिमानि तानि को नाम साधुः पुनराददीत ॥[६।।] अस्मत्कुलक्रममुदारभुदाहरद्भिरन्मैश्च दानमिदमभ्यनुमोदनीयं (यम्) । लक्ष्म्यास्तडिच्छलिलवुदु (बुद्ध) दचंचणाया दानं फलं परयसष्प (यशः) परिपा लनं च ।।[७] सर्वानेतान्भाविनः पार्थिवेन्द्रान्भूयो भूयो याचते रामभद्रः । सामान्योयं धर्मसेतु पाणां काले काले पालनीयो भवद्भि ॥८॥ इति क मलदलाम्वुवि (बुबि)न्दुलोलां श्रियमनुचित्य मनुष्यजीवितं च । सकलमि दमुदाहृतं च वुध(बुद्ध) वा न हि पुरुषैः परकीर्तयो विलोप्या (याः ) ।।[९।।] इति । संवत् १०३१. ७८ चैत्र शु (सु)दि १४ स्वयम (मा)ज्ञा मंगलं महाश्री । स्वहस्तोयं श्री भोजदेवस्य । अनुवाद (प्रथम ताम्रपत्र) १. ओं। जो संसार के बीज के समान चन्द्र की कला को संसार की उत्पति के हेतु मस्तक पर धारण करते हैं, मेघमंडल ही जिसके केश हैं ऐसे शिव श्रेष्ठ हैं ।।१।। प्रलयकाल में चमकने वाली विद्युत की आभा जैसी पीली, कामदेव के शत्रु शिव की जटायें तुम्हारा कल्याण करें ॥२॥ ३. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री सीयकदेव के पादानुध्यायी ४. परमभट्टारक महाराधिराज परमेश्वर श्री वाक्पतिराजदेव के ५. पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराधिराज परमेश्वर श्री सिंधुराजदेव के पादानुध्यायी ६. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री भोजदेव कुशलयुक्त होकर नागद्रह पश्चिमी पथक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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