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________________ बेटमा अभिलेख १९. माता पिता व स्वयं के पुण्य व यश की वृद्धि के लिए अदृष्ट फल को स्वीकार कर चन्द्र सूर्य समुद्र २०. व पृथ्वी के रहते तक परमभक्ति के साथ राजाज्ञा द्वारा जल हाथ में लेकर दान दिया है, यह मान कर २१. वहां के निवासियों व ग्रामीणों द्वारा जैसा दिया जाने वाला भाग भोग कर हिरण्य आदि हमारी आज्ञा श्रवण करके पालन करते हुए २२. सभी इस को देते रहना चाहिये । इस पुण्य फल को समान रूप जान कर हमारे वंश में व अन्यों में उत्पन्न होने वाले २३. भावी भोक्ताओं को हमारे द्वारा दिये गये इस धर्मदान को मानना व पालन करना चाहिये। और कहा गया है-- . सगर आदि अनेक नरेशों ने वसुधा भोगी है और जब जब यह पृथ्वी जितके अधिकार में रही है तब तब उसी को उसका फल मिला है॥५॥ __ यहां पूर्व के नरेशों द्वारा धर्म व यश हेतु जो दान दिये गये हैं, त्याज्य एवं के के समान जान कर कौन सज्जन व्यक्ति उसे वापिस लेगा.॥६॥ हमारे उदार कुलक्रम को उदाहरण रुप मानने वालों व अन्यों को इस दान का अनुमोदन करना चाहिये क्योंकि इस बिजली की चमक और पानी के बुलबुले के समान चंचल लक्ष्मी का वास्तविक फल (इसका) दान करना और (इससे) परयश का पालन करना ही है ।।७।। सभी इन होने वाले नरेशों से रामभद्र बार बार याचना करते हैं कि यह सभी नरेशों के लिये समान रूप धर्म का सेतु है । अतः अपने अपने काल में आपको इसका पालन करना चाहिये ।।८॥ इस प्रकार लक्ष्मी व मनुष्य जीवन को कमल दल पर पड़ी जल बिन्दु के समान चंचल समझ कर और इस सब पर विचार कर मनुष्यों की पर-कीति नष्ट नहीं करना चाहिये ॥९॥ ३१. यह संवत् १०७६ माघ सुदि ५ ३२. हमारी आज्ञा । मंगलं महाश्री। ये हस्ताक्षर स्वयं श्रीभोजदेव के हैं। (११) बेटमा का भोजदेव का ताम्रपत्र अभिलेख (संवत् १०७६=१०२० ईस्वी) प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है। ये ताम्रपत्र १९०१ ई. में इन्दौर जिले के देपालपुर परगना में बेटमा ग्राम में एक खेत से मिले थे। इसका प्रथम उल्लेख डिस्कलकर महोदय ने ए. रि. वा. म्यू. १९२२-२३, पृष्ठ १३ पर किया। फिर एपि. इं., भाग १८, १९२५-२६, पृष्ठ ३२० व आगे पर सम्पादन किया। १९३२ में बी. एन. रेऊ ने 'राजा भोज' ग्रन्थ में इसका विवरण दिया । ताम्रपत्र इन्दौर संग्रहालय. में सुरक्षित है। .... ताम्रपत्रों का आकार ३३ x २२ से. मी. है। इनमें लेख भीतर की और उत्कीर्ण हैं। इनमें दो छेद बने हैं जिनमें कड़ियां पड़ी हैं। किनारे मोटे हैं व भीतर की ओर मुड़े हैं। वजन २.९६ किलोग्राम है। ___ अभिलेख २७ पंक्ति का है। प्रथम ताम्रपत्र पर १३ व दूसरे पर १४ पंक्तियाँ उत्कीर्ण हैं। अक्षरों की बनावट सुन्दर है। दूसरे ताम्रपत्र पर अन्त में दोहरी लकीरों के चौकोर में गरूड़ का राजचिन्ह है जिसके बायें हाथ में नाग है व दाहिना हाथ उसको मारने हेतु ऊपर उठा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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