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प्रास्ताविक गुरुस्तुतिनां ९ श्लोकानु संस्कृतमां सुंदर आयोजन न्यायविशारद न्यायतीर्थ स्व० मुनिरानश्री न्यायविजयजी महाराजे करी आपेलु छे ।
आना प्रकाशनमां जैन आत्मानंद सभाना प्रमुख शाह खीमचंदभाई चांपशीभाई तथा अन्य कार्यवाहको घणो घणो रस लीधेलो छ ।
आ ग्रंथना संशोधन तथा सम्पादनमा प्राणरूप अने सर्व रीते सहायक पूज्यपाद मुनिराजश्री १००८ भुवनविजयजी महाराज के के जेओ मारी पूर्वावस्थाना परमपूज्य पिताश्री तथा अत्यारे श्रमण अवस्थामां मारा तारक गुरुदेवश्री छे । परम पूज्य गुरुदेवश्रीना शंखेश्वरजी तीर्थमां (विक्रम सं. २०१५, माह सुदि ८ मे) स्वर्गवास थयो त्यां सुधी पृ० ५५२ सुधी आ ग्रंथ छपाई गयो हतो, संपूर्ण ग्रंथर्नु संशोधन अने संपादन तो तेथी पण घणा समय पूर्वे थई गयु हतुं । आ ग्रंथना संशोधन, संपादन अने मुद्रण समये तेओश्रीए जे चिंता अने परिश्रमो कर्या छे तेनु वर्णन शब्दो द्वारा माराथी थई शके तेम ज नथी । आ बधा प्रसंगानु स्मरण करतां गुरु परमात्माना चरणोमां हृदय प्रणिपात पूर्वक झुकी जाय छ ।
अनंत उपकारी शासनपति परमाराध्य चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान् श्री महावीरप्रभुना करकमलमां प्रभुकृपाथी ज तैयार थयेला आ ग्रंथर्नु-वीरनिर्वाणसंवत् २५०१ मां-समर्पण करीने अने ए रीते प्रभुपूजन करीने अत्यंत आनंद अनुभवु छु।
वीरनिवांगसंवत् २५०१ विक्रमसंवत् २०३१ ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी, जेठ वदि ६ पत्री (कच्छ)
-निवेदक पूज्यपादाचार्य महाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरपट्टशिष्यपूज्यपादाचार्य महाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरशिष्यपूज्यपादगुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयान्तेवासी
मुनि जम्बूविजय
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